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=बृहत्कल्पभाष्यम्
३२८३.सो रायाऽवंतिवती, समणाणं सावतो सुविहिताणं।
__ पच्चंतियरायाणो, सव्वे सहाविया तेणं॥ ३२८४.कहिओ य तेसि धम्मो, वित्थरतो गाहिता य सम्मत्तं।
अप्पाहिता य बहुसो, समणाणं भद्दगा होइ॥ वह अवन्तीपति महाराज संप्रति सुविहित मुनियों का श्रावक हो गया। राजा ने एक बार सभी प्रात्यन्तिक राजाओं को बुलाया और उनको विस्तार से धर्म-विषयक बात बताई। उनको सम्यक्त्व प्राप्त कराई और उनको कहा-आप अपने देश में जाकर श्रमणों के प्रति भद्रक बने रहें, उनके प्रति भक्तिभाव रखें। ३२८५.अणुजाणे अणुजाती, पुप्फारुहणाइ उक्किरणगाई।
पूयं च चेइयाणं ते वि सरज्जेसु कारिंति॥ __महाराज संप्रति रथयात्रा में साथ जाते थे। पुष्पारोहण तथा रथ के आगे उत्किरण अर्थात् विविध प्रकार के फल, खाद्यपदार्थ आदि, करते थे। चैत्यों की पूजा भी करते थे। अन्यान्य राजा भी अपने-अपने राज्यों में रथयात्रा आदि करवाते थे। ३२८६.जति मं जाणह सामि, समणाणं पणमहा सुविहियाणं।
दव्वेण मे न कज्जं, एयं खु पियं कुणह मज्झं॥ महाराज संप्रति ने उन राजाओं से कहा यदि तुम मुझे । स्वामी मानते हो तो सुविहित श्रमणों को प्रणाम करो। मुझे द्रव्य नहीं चाहिए। मुझे केवल श्रमणों को प्रणमन करना प्रिय है। वह प्रियता आप करें।
३२८७.वीसज्जिया य तेणं, गमणं घोसावणं सरज्जेसु।
साहूण सुहविहारा, जाता पच्चंतिया देसा॥ यह शिक्षा प्रदान कर महाराज संप्रति ने एकत्रित सभी राजाओं को विसर्जित किया। वे राजा अपने राज्य में गए और अमारी की घोषणा करवाई। साधुओं के लिए वे क्षेत्र सुविहार क्षेत्र हो गए। (साधुओं ने राजा से कहा ये प्रत्यन्तवासी कल्प्य-अकल्प्य को नहीं जानते, अतः वहां विहार कैसे करेंगे?' तब संप्रति ने अपने सुभटों को साधुवेश में सुशिक्षित कर वहां भेजा।) ३२८८.समणभडभाविएसुं, तेसू रज्जेसु एसणादीसु।
साहू सुहं विहरिया, तेणं चिय भद्दगा ते उ॥ वे क्षेत्र श्रमणवेशधारी सुभटों से एषणा आदि में सम्यक भावित हो गए। फिर उन राज्यों में मुनि सुखपूर्वक विहार करने लगे। उसी काल से वे प्रत्यन्त देश भी भद्रक हो गए। ३२८९.उदिण्णजोहाउलसिद्धसेणो,
__य पत्थिवो णिज्जियसत्तुसेणो। समंततो साहुसुहप्पयारे,
अकासि अंधे दमिले य घोरे॥ महाराज संप्रति का सैन्यबल अपूर्व था। सेना प्रबल योद्धाओं से संकीर्ण तथा सर्वत्र अप्रतिहत थी। उस सेना ने समस्त विपक्षी सेनाओं को जीत लिया था। ऐसे सैन्यबल से अन्वित महाराज संप्रति ने प्रत्यपाय बहुल आंध्र, द्रविड़ आदि देशों को चारों ओर से साधुओं के सुखविहार के लिए उपयुक्त बना डाला।
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