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पहला उद्देशक
३२५८. देहोवहीतेणग-सावतेहिं,
पदुट्ठमेच्छेहि य तत्थ तत्थ ।
तदा विजाणिस्सह मे विसेसं ॥
आचार्य ने कहा - भद्रशिष्यो ! जब तुम प्रत्यन्त देश में विहरण करोगे और जब देहस्तेन, उपधिस्तेन श्वापद तथा प्रद्विष्टम्लेच्छों से वहां परितापित होकर संयम से परिभ्रष्ट होओगे तब तुम जान पाओगे कि मैंने क्या कहा था। ३२५९, वेज्जस्स एगस्स अहेसि पुत्तो,
मतम्मि ताते अणधीयविज्जो ।
जता परिब्भस्सध अंतदेसे,
गंतुं विदेसं अह सो सिलोगं,
घेत्तूणमेगं सगदेसमेति ॥ वैद्यपुत्र का दृष्टांत - एक गांव में एक वैद्य का पुत्र रहता था। पिता की मृत्यु हो गई पुत्र ने वैद्यक शास्त्र नहीं पढ़ा था। राजा ने उसको वृत्ति नहीं दी तब वह वैद्यक शास्त्र का अध्ययन करने विदेश में गया। वहां एक वैद्य के पास वैद्यक शास्त्र के अध्ययन के लिए रहा। एक दिन वैद्य से यह श्लोक सुना
'पूर्वाह्न वमनं दद्यादपराह्न विरेचनम् । वातिकेष्वपि रोगेषु, पथ्यमाहुर्विशोषणम् ॥'
उसने सोचा- वैद्यक का रहस्य यही है वह इस श्लोक
को लेकर अपने देश आ गया।
३२६०. अहाऽऽगतो सो उ सयम्मि देसे,
रणो णियोगेण सुते तिगिच्छं,
लखूण तं चैव पुराणवित्तिं ।
कुव्वंतु तेणेव समं विणट्ठो ॥
उसके अपने देश में आ जाने पर राजा से वही पुरानी वृत्ति प्राप्त कर वैद्यगिरी करने लगा। एक बार राजा की आज्ञा
१. १. द्रव्य आर्य - नामन आदि के योग्य तिनिश वृक्ष आदि ।
२. क्षेत्र आर्य-साढ़े पचीस जनपद तथा वहां के निवासी ।
३. जात्यार्य - अंबट्ट आदि छह इभ्यजातियां ।
४. कुलार्य - इक्ष्वाकु आदि छह कुलों में उत्पन्न । ५. भाषार्य - अर्धमागधी भाषाभाषी ।
२. आर्यजनपद (आर्य क्षेत्र) और उनकी राजधानियां।
१. मगध - राजगृह
२. अंग- चंपा
३. बंग तालिम
४. कलिंग - कंचनपुर
५. काशी - वाराणसी ६. कौशल - साकेत
७. कुरु-गजपुर
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८. कुशा-सौर्यपुर
९. पांचाल - कंपिल्ख
१०.
जंगल-अहिच्छत्रा
११. सौराष्ट्र-द्वारवती
१२. विदेह - मिथिला
१३. वत्स - कौशांबी १४. संडिब्भ-नंदीपुर
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से वह राजपुत्र की चिकित्सा उसी श्लोक के माध्यम से करने लगा। राजपुत्र उस अपप्रयोग से मर गया। वैद्यपुत्र भी उसीके साथ मार डाला गया।
(इसी प्रकार जो आचार्य इस कल्पाध्ययन को नहीं जानते अथवा कुछ अंश जानते हुए संघ का प्रवर्तन करते हैं वे स्वयं संसारचक्र में परिभ्रमण करते हुए अनेक जन्म-मरण करते हैं।)
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३२६१. साएयम्मि पुरवरे, सभूमिभागम्मि वज्रमाणेण । सुत्तमिणं पण्णत्तं, पडुच्च तं चेव कालं तु ॥ साकेत नगर के सभूमीभाग उद्यान में भगवान् वर्द्धमान ने इस सूत्र की उस वर्तमान काल के आधार पर श्रमणश्रमणियों के सम्मुख प्रज्ञापना की। उन्होंने कहा३२६२. मगहा कोसंबी या भ्रूणाविसओ कुणालक्सिओ य
एसा विहारभूमी, एतावंताऽऽरियं खेतं॥ पूर्व दिशा में मगधजनपद, दक्षिण दिशा में कौशाम्बी, पश्चिम दिशा में स्थूणा जनपद और उत्तर दिशा में कुणाल जनपद-इतना ही आर्यक्षेत्र है। अतः साधुओं की यह विहार भूमी है। इससे आगे विहरण करना नहीं
कल्पता ।
३२६३. नामं ठवणा दविए, खेत्ते जाती कुले य कम्मे य भासारिय सिप्पारिय, णाणे तह दंसण चरिते ॥ आर्यपद के १२ निक्षेप हैं
१. नाम आर्य
२. स्थापनाआर्य
३. द्रव्य आर्य
४. क्षेत्र आर्य
५. जात्यार्य
६. कुलार्य
६. शिल्पार्थ तंतुवाय आदि ।
७. ज्ञानार्य-मतिज्ञान आदि के धारक ।
८. दर्शनार्थ- सरागदर्शनार्य वीतरागदर्शनायें ।
९. चारित्रार्य-पांच प्रकार के चारित्र के धारक ।
१५. मलय विपुर
१६. वत्स - वैराट
१७. अच्छ-वरण १८. दशार्ण - मत्तियावती १९. चेदी - सुप्तीवती २०. सिन्धुसौवीर - वीतभय २१. शूरसेन - मथुरा
७. कर्मार्थ
८. भाषार्य
९. शिल्पार्थ
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१०. ज्ञानार्य
११. दर्शनार्य
१२. चारित्रार्य
२२. भंगी-पावा
२३. वर्त्त - मासपुर
२४. कुणाल - श्रावस्ती २५. लाढ - कोटिवर्ष २५ कैकेयी अर्द्ध-श्वेतविका
(वृ. पृ. ९१३)
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