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________________ ३०८ = =बृहत्कल्पभाष्यम् प्रवेश करे। पल्ली में क्यों आए यह पूछने पर कहे- हम मार्ग हे सुविहित ! हृताहृतिक यदि पांच वर्णवाले भी कर लिए में भटक गए थे, अतः इधर आ गए। जाते हैं, उन्हें भी पुनः लेना कल्पता है। वे वस्त्र परिभुक्त हों ३०२४.मुसिय त्ति पुच्छमाणं, या अपरिभुक्त, वे लिए जा सकते हैं, किन्तु उस विषयक को पुच्छइ किं व अम्ह मुसियव्वं।। अल्पबहुत्व को जान लेना चाहिए। अहिवं भणंति पुट्विं, ३०३०.आधत्ते विक्कीए, परिभुत्ते तस्स चेव गहणं तु। अणिच्छे सन्नायगादीहिं॥ अन्नस्स गिण्हणं तस्स चेव जयणाए हिंडंति॥ कोई यह पूछे कि क्या आप लूटे गए हैं ? उसे कहे-हमें वस्त्र चोरों ने लेकर रख दिया हो, उसको बेच दिया हो, कौन पूछता है? हमारे पास लूटने जैसा है ही क्या? पल्ली उसका परिभोग कर लिया हो और वे यदि उसके बदले में जाकर सबसे पहले चोराधिपति को अपहृत उपधि के दूसरा वस्त्र देना चाहे तो कहे-हमें वही वस्त्र दो। उसी वस्त्र विषय में पूछते हैं। यदि वह देना न चाहे तो उसके स्वजनों, को ग्रहण करे, न प्राप्त होने पर अन्य वस्त्र का ग्रहण करे। मित्रों को प्रज्ञापित करते हैं। उस चोराधिपति द्वारा साथ में भेजे गए आदमी के साथ ३०२५.उवसंतो सेणावइ, उवगरणं देइ वा दवावेइ। वस्त्रान्वेषण के लिए यतनापूर्वक घूमे। गीयत्थेहि य गहणं, वीसुं वीसुं च से करणं॥ ३०३१.अन्नं च देइ उवहिं, सो वि य नातो तहेव अन्नातो। चोराधिपति उपशांत होने पर स्वयं उपकरणों को दे देता सुद्धस्स होइ गहणं, असुद्धि घेत्तुं परिढवणा॥ है या अपने साथियों से दिला देता है। गीतार्थ मुनि उनको __ वह चोराधिपति दूसरा वस्त्र दे, वह वस्त्र ज्ञात भी हो ग्रहण कर उनको पृथक्-पृथक् कर स्थापित करते हैं। सकता है और अज्ञात भी। उसमें जो शुद्ध हो वह ले और जो ३०२६.सत्थो बहू विवित्तो, गिण्हह जं जत्थ पेच्छह अडता। अशुद्ध है, उसे लेकर परिष्ठापित कर दे। ___ इहइं पडिपल्लीसु य, रूसेह बिइज्जओ हं भे॥ ३०३२.तं सिव्वणीहि नाउं, पमाण हीणाहियं विरंगं वा। चोराधिपति कहता है हमारे अनेक साथियों ने सार्थ को इतरोवहिं पि गिण्हइ, ता अहिगरणं पसंगो वा॥ लूटा है। आप घूमते हुए देखें और अपने वस्त्र ग्रहण कर लें। उस वस्त्र के सीने की विधि से प्रमाण से हीन या तब मुनि कहे-आप अपना एक आदमी हमारे साथ भेजें। एक अधिक तथा बदरूप देखकर यह जान ले कि यह दूसरों का आदमी को साथ भेजने पर वह कहता है। इस पल्ली में या है, फिर भी उसे ग्रहण कर ले क्योंकि ग्रहण न करने पर प्रतिपल्ली में जो-जो आपके वस्त्र है उन्हें आप 'रूसेह'-ढूंढ अधिकरण-असंयत व्यक्तियों के परिभोग का प्रसंग लें। मैं आपके साथ दूसरा व्यक्ति हूं। उपस्थित हो सकता है। ३०२७.अम्हं ताव न जातो, जह एएसिं पि पावइ न हत्थं। ३०३३.अन्नस्स व पल्लीए, जयणा गमणं तु गहण तह चेव। तह कुणिमो मोसमिणं, छुभंति पावा अह इमेसु॥ गामाणुगामियम्मि य, गहिए गहणे य जं भणियं॥ चोर सोचते हैं-यह लूट हमारे हस्तगत नहीं हुई तो हम यदि हृतोपकरण का कुछ भाग अन्य चोरपल्ली में चला ऐसा उपाय करें कि लूटा हुआ सामान साधुओं के हस्तगत गया हो तो उस पल्ली में यतनापूर्वक गमन करे और भी न हो, इसलिए वे चोर उस सामान को निम्न स्थानों में यतनापूर्वक वस्त्र ग्रहण करे। यदि ग्रामानुग्राम विहरण करने फेंक देते हैं। वाले मुनि लूट लिए गए हों तो वस्त्रान्वेषण के लिए गमन ३०२८.पुढवी आउक्काए, अगड-वणस्सइ-तसेसु साहरई। और वस्त्र-ग्रहण में पूर्वोक्त यतना करणीय है। सुत्तत्थजाणएणं, अप्पाबहुयं तु नायव्वं॥ ३०३४.तत्थेव आणवावेइ तं तु पेसेइ वा जहिं भद्दो। पृथ्वीकाय पर, अप्काय पर, कूए में, वनस्पति पर, बस सत्येण कप्पियारं, व देइ जो णं तहिं नेइ॥ जीवों पर अपहृत उपकरणों का निक्षेप कर डालते हैं। इस यदि मूल पल्लीपति भद्र हो तो उन वस्त्रों को वहीं मंगा स्थिति में सूत्रार्थ को जानने वाला मुनि उन उपकरणों को लेता है अथवा अपने आदमी को भेजकर प्राप्त कर लेता है। ग्रहण करने या न करने से होने वाले दोषों के अल्प-बहत्व अथवा सार्थ के साथ वहां जाना चाहिए। यदि सार्थ प्राप्त न हो को जान ले। तो पल्लीपति से एक आदमी की मांग करनी चाहिए। ३०२९.हरियाहडिया सुविहिय!, पंचवन्ना वि कप्पई घेत्तुं। पल्लीपति 'कल्पितार'-मार्गदर्शक अपने आदमी को देता है, परिभुत्तमपरिभुत्ता, अप्पाबहुगं वियाणित्ता॥ वह साधुओं को उस पल्ली में ले जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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