________________
पहला उद्देशक
उसे चोर समझ कर पकड़ सकते हैं, उसे अभिमर मानकर उत्पीड़ित कर सकते हैं यह आत्मविराधना होती है। संयमविराधना में छह कायों की विराधना अथवा प्राणवध आदि दोष होते हैं।
२८४३. पाणवह पाणगहणे, कप्पट्टोद्दाणए अ संका उ भणिओ न ठाइ ठाणे, मोसम्मि उ संकणा साणे ॥ रात्री प्रत्युपेक्षा न कर सकने के कारण प्राणी (बीज आदि) ग्रहण से प्राणवध होता है । रात्री में मुनि को देखकर बालक भयभीत हो जाने पर गृहस्वामी के मन में शंका होती है । कोई गृहस्थ साधु को कहता है-रात्री में मेरे घर मत आया करो। वह साधु कहता है-अब तेरे घर में कुत्ते आयेंगे। परन्तु वह साधु अपने वचनों में स्थिर नहीं रहता । वह उसी घर में रात को जाता है। तब गृहस्थ को शंका होती है कि ये मुनि मृषावादी हैं।
२८४४. तु सवित्तिणिसुयं पडियरई काउमऽग्गदारम्मि ।
समणेण णोल्लियम्मी, पवेदण जणस्स आसंका ॥ कोई स्त्री रात्री में अपने सौत के बच्चे को मारकर घर के अग्रद्वार पर उसको हाथ में लेकर जागती हुई खड़ी रहती है। इतने में ही श्रमण भिक्षा के लिए आया, दरवाजा खोला तो सहसा वह मृत बालक भूमी पर आ गिरा। स्त्री ने चिल्लाते हुए कहा - इस श्रमण ने बालक की हत्या की है। लोग एकत्रित हुए। उनको श्रमण पर आशंका हुई। उस समय ग्रहण आकर्षण आदि दोष होते हैं।
२८४५. मा निसि मोकं एज्जसु, भणाइ एहिंति ते गिहं सुणगा।
पुणरितं सडिपई, भणाइ सुणओ सि किं जातो ।। २८४६. एवं चिय में रति, कुसणं विज्जाहि तं च सुणए ।
खइयं ति य भणमाणे, भणाइ जाणामि ते सुणए ॥ रात्री में साधु को मिक्षा के लिए आया हुआ देखकर गृहपति बोला- 'रात्री में मेरे घर मत आया करो।' साधु ने कहा- 'तुम्हारे घर पर कुत्ते आयेंगे।' साधु पुनः उसी घर में आया गृहपति बोला- क्या तुम कुत्ते हो गए? एक दिन गृहपति ने अपनी पत्नी से कहा- मेरे लिए 'कुसण' रखना । रात्री में वह मुझे देना रात्री में गृहपति ने पत्नी को 'कुसण' परोसने के लिए कहा। पत्नी बोली- कुत्ते उसे खा गए। इस प्रकार कहती हुई पत्नी से पति बोला- मैं तुम्हारे (पुरुष) कुत्तों को जानता हूं। इस प्रकार मृषावाद विषयक शंका होती है।
९
२८४७. सयमेव कोह लुछो, अवहरती तं पडुच्च कम्मकरी । वाणिगिणी मेहुन्नं, बहुसो व चिरं व संका या ।। १. कुसणं मुङ्गदाल्यादि तस्य यदुकं तदपि कुरुवम् ।
Jain Education International
२८९
कोई मुनि भिक्षा के लिए रात्री में गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ वहां वस्त्र हिरण्य आदि बिखरे पड़े थे। वह स्वयं लोभवश उनका हरण कर लेता है अथवा घर में काम करने वाली कर्मकरी, उन्हें यह सोचकर उठा लेती है कि श्रमण पर ही अपहरण का आरोप आयेगा रात्री में मुनि को घर पर आया देख कोई प्रोषितभर्तृका वणिक्स्त्री उससे मैथुन की याचना करती है इससे चतुर्थव्रत की विराधना होती है। अथवा उस घर में बार-बार आने, चिरकाल तक आलापसंलाप करने से लोगों को मैथुनप्रतिसेवना की आशंका होती है।
२८४८. अणभोगेण भरण व पडिणीओम्मीस भत्तपाणं तु ।
दिज्जा हिरन्नमादी, आवज्जण संकणा दिट्ठे ॥ कोई अजानकारी में या भय से भक्त पान में मिश्रित हिरण्य आदि दे देता है अथवा कोई शत्रुता के कारण भक्तपान के साथ स्वर्ण आदि दे देता है। उसे मूर्च्छावश पास में रख लेने पर दूसरों द्वारा दृष्ट होने पर मुनि के प्रति शंका आदि दोष होते हैं इसलिए रात्री में भिक्षाचर्या के लिए पर्यटन नहीं करना चाहिए।
२८४९ तं पय चउब्विहं राहभोयणं चोलपट्टमहरेगे। परियावन्न विगिंचण, दर गुलिया रुक्ख सुन्नघरे ॥ रात्री भोजन चार प्रकार का है
१. दिन में लाया हुआ, दिन में खाता है। २. दिन में लाया हुआ रात्री में खाता है। ३. रात्री में लाया हुआ दिन में खाता है । ४. रात्री में लाया हुआ, रात्री में खाता है। चोलपट्टक, अतिरेक, पर्यापन्न, विगिंचण, दर, गुलिका, वृक्ष, शून्यगृह - ( विस्तारार्थ आगे की गाथाओं में यह नियुक्ति गाथा है) ।
२८५०, खमणं मोहतिगिच्छा, पच्छित्तमजीरमाण खमओ वा
गच्छह सचोलपट्टो, पुच्छ द्रुवणं पढमभंगो ॥ एक साधु ने क्षपण-उपवास किया। वह मोहचिकित्सा के लिए या प्रायश्चित्त स्वरूप या अजीर्ण हो जाने के कारण या एकान्तरिक तप हेतुक किया गया हो। उस मुनि के संज्ञातकों के वहां आज संखड़ी है। वह बिना पात्र लिए, केवल घोलपट्ट पहनकर वहां गया। उन्होंने पूछा- पात्र नहीं लाए। क्या आज उपवास है? उसने कहा- हां! तब गृहस्वामी ने उस संबंधी मुनि के लिए, संखड़ी में बने भोज्य का, एक विभाग स्थापित कर दिया। 'हम कल पारणक में इस मुनि को देंगे' - यह उसकी भावना थी। दूसरे दिन पारणक में उस द्रव्य को ग्रहण
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org