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________________ बृहत्कल्पभाष्यम् हात ४०२. तिविहो बहुस्सुओ खलु, जहण्णओ मज्झिमो उ उक्कोसो। आयारपकप्पे कप्प नवम-दसमे य उक्कोसो॥ बहुश्रुत के तीन प्रकार हैं-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। आचारप्रकल्प अर्थात् निशीथ को धारण करने वाला जघन्य बहश्रुत, कल्प और व्यवहार का धारक मध्यम बहुश्रुत और नौवें और दसवें पूर्व का धारक उत्कृष्ट बहुश्रुत होता है। ४०३. चिरपव्वइओ तिविहो, जहण्णओ मज्झिमो य उक्कोसो। तिवरिस पंचग मज्झो, वीसतिवरिसो य उक्कोसो॥ चिरप्रव्रजित के तीन प्रकार हैं-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। जघन्य चिरप्रवजित-तीन वर्ष की संयमपर्यायवाला। मध्यम चिरप्रवजित-पांच वर्ष की संयमपर्यायवाला। उत्कृष्टचिरप्रवजित बीस वर्ष की संयमपर्यायवाला। ४०४. बहुसुय चिरपव्वइओ, उ एत्थ मज्झेसु होति अहिगारो। एत्थ उ कमे विभासा, कम्हा उ बहुस्सुओ पढमं॥ यहां मध्यम बहुश्रुत तथा मध्यम चिरप्रव्रजित का अधिकार है। यहां क्रमविषयक विभाषा-विमर्श करना चाहिए। बहुश्रुत का कथन सबसे पहले क्यों किया गया ?? ४०५. सुत्ते अत्थे तदुभय, उव्वट्ठ विचार लेव पिंडे य। सिज्जा वत्थे पाए, उग्गहण विहारकप्पे य॥ कल्पिक बारह प्रकार का होता है सूत्र से, अर्थ से, तदुभय-दोनों से, उपस्थापना में, विचार में, पात्रलेपन में, पिंड में, शय्या में, वस्त्र में, पात्र में, अवग्रहण में तथा विहारकल्प में। ४०६.सुत्तस्स कप्पितो खलु, आवस्सगमादि जाव आयारो। तेण पर तिवरिसादी, पकप्पमादी य भावेणं॥ सूत्रकल्पिक वह होता है जो आवश्यक से प्रारंभ कर आचार पर्यन्त श्रुत का अध्ययन कर लेता है। (इतना श्रुताध्ययन करने में कोई निवारित नहीं करता।) उसके पश्चात तीन वर्ष की संयमपर्यायवाले श्रमण से प्रारंभ कर बीस वर्ष की पर्यायवाला श्रमण सर्वश्रुतानुपाती हो जाता है। इसी प्रकार आचारप्रकल्प से लेकर अन्यान्य अपवाद बहुल १. पहले प्रव्रज्या होती है, पश्चात् श्रुत होता है, पश्चात् प्रथम चिरप्रव्रजित का उपादान किया जा सकता है। आचार्य कहते हैं-जो किया है, उसमें कोई दोष नहीं है। नियमविशेष को बताने के लिए इस प्रकार उपादान किया है। जो बहुश्रुत है, वह नियमतः चिरप्रवजित होगा, जिससे त्रिवर्षप्रव्रजित श्रमण को निशीथ, पंचवर्ष प्रव्रजित को कल्प और व्यवहार तथा बीस वर्ष प्रवजित अध्ययनों तथा अतिशायी अध्ययनों का अध्यापन, जब श्रमण भाव से परिणत हो जाता है, तब कराया जाता है। ४०७. सुत्तं कुणति परिजितं, तदत्थगहणं पइण्णगाई वा। इति अंग-ऽज्झयणेसुं, होति कमो जाहगो नाय।। (संयम पर्याय के तीन वर्ष अभी पूर्ण नहीं हुए हैं और वह आचार को पढ़ चुका है तो वह आगे क्या करे?) वह पठित सूत्र को परिचित करे। अथवा सूत्र के अर्थ का ग्रहण करे। अथवा प्रकीर्णक सूत्रों को सूत्रतः और अर्थतः पढ़े। इस प्रकार अंग आगमों का तथा अतिशायी अध्ययनों का क्रम तब तक जानना चाहिए जब तक कल्पिक नहीं हो जाता। यहां उद्दिलाव का उदाहरण ज्ञातव्य है। ४०८. अत्थस्स कप्पितो खलु, आवासगमादि जाव सूयगडं। मोत्तूणं छेयसुयं, जं जेणऽहियं तदट्ठस्स।। आवश्यक सूत्र से प्रारंभ कर यावत् सूत्रकृतांग तक जो अध्ययन कर चुका है, वह उनके अर्थ का कल्पिक होता है। सूत्रकृतांग के पश्चात् भी छेदसूत्रों को छोड़कर जिसने जितना श्रुत पढ़ा है, वह उस समस्त श्रुत के अर्थ का कल्पिक होता है। (छेदसूत्र पढ़ लेने पर भी जब तक शिष्य अपरिणत होता है तब तक अर्थ नहीं दिया जाता। परिणत होने पर वह उनके अर्थ का कल्पिक होता है।) ४०९. तदुभयकप्पिय जुत्तो, तिगम्मि एगाहिएसु ठाणेसु। पियधम्मऽवज्जभीरू, ओवम्म अज्जवइरेहिं।। जो शिष्य सूत्र और अर्थ-दोनों को एक साथ ग्रहण करने में समर्थ होता है, वह उभयकल्पिक होता है। अथवा त्रिक का अर्थ है-सूत्र, अर्थ और तदुभय। सूत्र से अर्थ अधिक होता है, अर्थ से अधिक होता है तदुभय। जो शिष्य अर्थ से अधिक जो उभयस्थान है--सूत्रार्थरूप इनमें जो युक्त-योग्य होता है वह उभयकल्पिक होता है। अथवा जो प्रियधर्मा और अवद्यभीरू (कर्मभीरू) होता है वह उभयकल्पिक है। इस संदर्भ में आर्यवज्र की उपमा दी जाती है। ४१०. पुव्वभवे वि अहीयं, कण्णाहडगं व बालभावम्मि। उत्तममेहाविस्स व, दिज्जति सुत्तं पि अत्थो वि॥ पूर्वभव में जिसके पढ़ा हुआ है, अथवा बाल्य अवस्था में को दृष्टिवाद की वाचना दी जा सकती है। इसलिए उक्त क्रम निर्दोष है। २. एक बार एक आचार्य अपने शिष्य को सूत्र की वाचना दे रहे थे। आर्यवज्र उस समय बालक थे। उन्होंने वह सूत्र सुना, पश्चात् उसका उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अर्थ दूसरी पौरुषी में बता दिया। (वृ. पृ. ११८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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