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________________ टीका में उद्धृत चूर्णि के संकेत ( व्याख्या साहित्य के क्रम में भाष्य के बाद चूर्णियां लिखी गईं। निशीथ की चूर्णि प्रकाशित रूप में उपलब्ध है। लेकिन व्यवहार एवं बृहत्कल्प की चूर्णि अप्रकाशित है । व्यवहारचूर्णि की हस्तलिखित प्रतियां यत्र-तत्र भंडारों में मिलती हैं। व्यवहार भाष्य के टीकाकार ने अनेक स्थलों पर चूर्णि का उल्लेख किया है। यहां हम टीका में उद्धृत चूर्णि के अंशों को यथावत् प्रस्तुत कर रहे हैं । ) चाह चूर्णिकृत्— चित्त इति जीवस्याख्येति । (गा. ३५ टी. प. १५) आह च चूर्णिकृत् - पाणाइवायं करोमीति जो संकल्पं करेइ चिंतयतीत्यर्थः संरंभे वट्टइ परितावणं करेइ सभारंभे वट्टइति । (गा. ४६ टी. प. १८) चास्यैव व्यवहारस्य चूर्ण्य दृष्ट्वा लिखितमिति । Jain Education International (गा. ११४ टी. प. ४० ) उक्तं चास्यैव व्यवहारस्य चूर्णौ एएसु चेव अट्ठमीमादीसु चेइयाई साहुणो वा जे अण्णाए वसहीए ठिया ते न वंदंति मासलघु जइ चेइयघरे ठिया वेयालियं कालं पडिक्कंता अकए आवस्सए गोसे य कए आवस्सए चेइए न वंदंति तो मासलहु- इति । (गा. १२६ टी. प. ४५) परिशिष्ट-२२ उक्तं च चूर्णौ छम्मासाण परं जं आवज्जइ तं सव्वं छंडिजइ । (गा. १४० टी. प. ४८ ) एतच्च चूर्णिकारोपदेशात् विवृतं । तथा चाह चूर्णिकृत् उपरिल्ला हिं चउहिं, पिण्डेसणाहिं अन्नयरीए अभिग्गहो सेसासु तिसु अग्गहो इति । (गा. ८०४ टी. प. ६८ ) आह च चूर्णिकृत् जइ ताव तइओ भंगो अणुण्णाओ प्रागेव पढमो भंगो अण्णात इति । (गा. १७७६ टी. प. ११) ता पीढसमुद्दा मुहपियजंपगा ते पव्वज्जाओ । भावणा वयणाणि भणिञ्जा तणपडिवत्तिकुसलेणं कहण्णं मलिया मद्दिया भवन्तीति चूर्णि: 1 (गा. २४६५ टी. प. ८) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002531
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra Bhashya
Original Sutra AuthorSanghdas Gani
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages860
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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