SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क० ११, १४; १२, १-९, १३, १-९] उत्तरकण्डं-अट्ठसत्तरिमो संधि [१८३ ॥ घत्ता ॥ थुइ एम करेंवि किर वीसमइ ताव पडिच्छिय-पेसणेण । स-कलत्तु स-लक्खणु स-वलु वलु णिउ णिय-णिलउ विहीसणेण ॥ १४ [१२] सु-वियड्ड वियड्डाएवि लहु. वर-जुवइहुँ दसहिँ सहिँ सहुँ ॥१ दहि-दोव-जलक्खय-गहिय-कर. गय तहिँ जहिँ हलहर-चक्कहर ॥ २ आसीसहिँ सेसहिँ पणवणेहिँ जय-णन्द-वद्ध-वद्धावणेहिँ ॥ ३ उच्छाहेंहिँ धवलेंहिँ मङ्गलेंहिँ • पडु-पडहेहिँ सङ्कुहिँ मन्दलेंहिँ ॥४ कइ-कहऍहिँ णड-णहावऍहिँ गायण-वायण-फम्फावऍहिँ ॥५ णर-णायर-वम्भण-घोसणेहिँ अवरेहि मि चित्त-परिओसणेहिँ ॥ ६ ॥ मन्दिर पइसरइ विहीसणहाँ मजणउँ भरिउ रह-णन्दणहों ७ पुणु ण्हवणासणा-परिहावणेहिँ दसकण्ठ-कोस-दरिसावणेहिँ ८ ॥ घत्ता ॥ गउ दिवसु सब्बु पाहुण्णऍण लब्भइ तो वि पमाणु ण वि । 'सुहु' सुअउ सीय सहुँ रहु-सुऍण' एम भणेवि' णं लिहक्कु रवि ॥ ९ ॥ [१३] तो भणइ विहीसणु दासरहि अणुहुचि भडारा सयल महि ॥ १ सीयऽग्ग-महिसि 'तुहुँ रज-धरु सोमित्ति मन्ति हउँ आण-करु ॥२ रमणीय एह लङ्का-णयरि ऍहु तिजगविहूसणु पवर-करि ॥ ३ ऍह पुप्फ-विमाणु पहाणु घरे ऍउ चन्दहासु करवालु करें ॥ ४ सिंहासण-छत्तइँ चामर लइ उवसमन्तु रिउ-डामर ॥५ तं णिसुर्णेवि पभणइ दासरहि ____'अणुहुञ्जि विहीसणु तुहुँ जें महि ॥ ६ . अम्हहुँ घर भरहु जे रज-धरु जसु जणणिहें ताएं दिण्णु वरु ॥ ७ तुम्हहुँ घरे तुज्झु जे राय-सिय • सइ जासु वियड्डाएवि तिय ॥८ ॥ घत्ता॥ णहें सुरवर महियलें मेरु-गिरि जाव महा-जलु मयरहरें। परिभमइ कित्ति जगें जाव महु ताव विहीसण रज्जु करें ॥९ 12. 1 P °हुं. 2 PS A हि. 3 SA °उं. 4 P भणिउ. 5 Ps साउ. 6 PSA, पाहुण'. 7A सुहि. 8 P S A °हु. 9 P S A भणिवि. 13. 1 PSA तुहु. 28 A रज्ज. 3 PS A °इ. 25 [१२] १ विभीषणस्य राजी २ 'वकण्ण' पाठे 'प्रचकन्यः' 3 सर्वोन्मवेन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002525
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1960
Total Pages388
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy