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INTRODUCTION
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अग्गल-पच्छल परिहरिएवी,
सवियासु काय-णियच्छणउँ, 'जिह तूसइ तिह सेव करेवी ।।
इट्ठागम-देव-दुगुञ्छणउँ॥ ८१ ११ ५-९ संकेय-वयण-अवयारणउँ, आयइँ लहुयाइँ ण कारण,
पर-णिन्दणु पाय-पसारणउँ । टिीवण-पायपसारण।।
अवरु वि जं विणएं विरहियउँ, कहर-मोडण-जिम्भामेल्लण:।।
सं म करह गुरुयण-गरहियउँ ।। कन्तेकहण-परासण-पेल्लण।। अवहउर-रूप-णिहालण,
उायसियहित्थुप्फालण। __ अइँ सव्वइँ वञ्चेवाइँ, इन्दियई पञ्च खञ्चेवाइँ ॥
RC. २८ १ ७-१० ५५. मे हरिअम्माहीप (र)ऍण,
२५. परियन्दइ अम्माहीरएण । परिय दइ हल्लह णाह ।
हो हल्लरु जो जो सुहुँ सुअहि, गोउलें पइँ अवइण्णऍण
पइँ पणवन्तउ भूयगणु ॥ हउँ हुइय जि सणाह॥ RC. 51 Ghatta
४ ४ १३-१४ Besides there are several passages which have common contents and descriptive patterns in PC. and MP. For instance..
(1) The passage describing various services rendered to
Marudevi by Śrī, Hri, etc., in PC. gives the details in a sequence of lines each beginning with kā vi (1 14 5-8). The corresponding passage in MP. (3 4 1-7) also gives similar details with a sequence of lines each be
ginning with ka vi. (2) The passage in PC. describing the activities of the gods
celebrating the ceremonial bath of newly-born Rsabha has a sequence of lines each beginning with kehi mi (PC. 2 4 2-8). The corresponding passage in MP. has similar details and a sequence of lines mostly begin
ning with kena vi (MP. 3 18 1-6). (3) The contents and pattern of PC. 41 and MP. 16 3 des
cribing how the triumphant Cakra did not enter
Ayodhyā are closely similar. The sentences in PC giving the similes begin with jiha and those in MP. end
with va. (4) Compare the following passages from the Svayambhū
chandas and the Mahăpurāņa: जिण-णामें मअगल मुअइ दप्पु,
तुह णामें जउ भक्खइ अहि वि।। केसरि वस होइ ण डसइ सप्पु ।। तुह णामें णासइ मत्त-करि, जिण-णामें ण डहइ धअधअन्त,
कम देंतु वि थक्कइ णरह हरि ।। हुअवह जाला-सअ-पज्जलन्त ।। तुह णामें हुयवहु णउ डहद, जिण गामें जलणिहि देह थाहु,
पर-वलु गय-पहरणु भउ पहइ ।। आरण्णे वण्णु ण वधइ वाहु ।
तुह णामें संतोसिय-खलउ जिण-णामें भव-सअ-संखलाईं,
_तुझेवि जंति पय-संखलउ ।। टुटन्ति होन्ति खणे मोक्कलाई ।। तुह णामें सायरि तरइ णरु, जिण-णामें पीडइ गहु ण को वि,
ओसरइ कोह-कंदप्प-जरु॥ दुम्मइ-पिसाउ ओसरइ सो-वि
तह णामें केवल-किरण-रवि
णीरोय होति रोयाउर वि॥ जिण-णाम-पवित्तें, दिवसुबन्ते
पूरंति मणोरह, गह साणुग्गह,
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