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________________ १७ क० १,४-१०,२,१-१०] एगुणवीसमो संघि चित्तेण तेण सुपरिवेवि कङ्कणु अहिणाणु समेल्लवेवि ॥ ४ गउ णरवइ सहुँ मित्तेण तहिँ ___माणससरें दूसावासु जहिँ ॥ ५ गुरुहार हूअ एत्तहें कि सइ कोक्कावेंवि पभणइ केउमइ ॥६ 'एउ काइँ कम्मु पइँ आय रिउ णिम्मलु महिन्द-कुलु धूसरिउ ॥ ७ दुवार-वइरि-विणिवाराहों मुहु मइलिउ सुअाँ महाराहों' ॥८ तं सुंणेवि वसंतमाल चवइ 'सुविणे" वि कलङ्कु ण संभवइ ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ इK कङ्कणु इमैं परिहणउ . इ# कञ्चीदामु पहाणहों। ण तो का "वि परिक्ख करें परिसुज्झहुँ जेण मज्झे जणों ॥५. [२] तं णिसुणेवि वेवन्ति समुट्ठिय अप्पुणु । वे वि ताउ कसघाऍहिँ हयउ पुणुप्पुण ॥ १ 'किं जारहों णाहिँ सुवण्णु घरे जे कडउ घडावेवि छुहइ करें ॥२ अण्ण वि एत्तिउ सोहग्गु कउ जे कङ्कणु देइ कुमार तउ' ॥३ कडुअक्खर-पहर-भयाउरउ संजायउ वे वि णिरुत्तरउ ॥४ हकारेवि पभणिउ कूर-भडु 'हय जोत्तें महारह-बीटें चडु ॥५ . एयउ दुट्ठउ अवलक्खणउ ससि-धवलामल-कुल-लञ्छणउ ॥ ६ माहिन्दपुरहों दूरन्तरण परिधिवंवि आउ सहुँ रहवरेण ॥ ७ जिह मुअ ण आवइ वत्त महु' तं णिसुर्णेवि सन्दणु जुत्तु लहु ॥८ गउ वे वि चडावेवि णवर तहिँ सामिणि-केरउ आएसु जहि ॥९ ॥ ॥ घत्ता ॥ णयरहों दूरे वरन्तरेण 'माएँ खमेजहि जामि हउँ' अञ्जण रुवन्ति ओआरिया। सहुँ धाहऍ पुणु जोकारिया ॥ १० 10 तं परिच्छिवेवि. 11 समुल्लविवि. 12 P S पभणिय, A पभणइं. 13 A संचरिर. 14PS णिसुणेवि. 15 PS सिविणए. 16 P S एउ. 17 PS परिहाणउं, A परिहणलं. 18 PS किं पि. 19 P 5 जेम. 2. 1 A अपणु. 2 P 8 पुणु वि पुणु. 3 PS A हक्कारि वि. 4 PS महारहे. 5 P 3 दूरत्तजेण..6 परिधिविवि. 7 PS A चडाविवि. 8 PS दूरवंतरेण. 9 A अंति. ५ पर्यानोच्य. ६ सु(श्वभू. पड० चरि• 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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