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________________ क०५,९६, १-९,७,१-6] अट्ठारहमो संधि ॥ पत्ता ॥ पासेउ वलग्गइ ल्हसइ तणु तं इङ्गिाउ पेखवि अण्ण-मणु। .. पभणिउ पहसिऍण णिएवि मुहु 'किं दुबलिहुयउ कुमार तुहु' ॥९ [६] विरहग्गि-दड्ड-मुहै-कञ्जएण पहसिउ पवुत्तु पवणञ्जएण ॥ १ 'भो णयणाणन्दण चारु-चित्त णउ विसहउँ तइयउ दिवसु मित्त ॥२ जइ अज्जु ण लक्खिउ पियहें वयणु तो कल्लऍ महु णित्तुलउ मरणु' ॥ ३ तं णिसुणेवि वुच्चइ पहसिएण कमलेण व वयणें पहसिएण ॥४ 'फणि-सिर-रयणेण वि णाहिँ गण्णु ऍउ कारणु केत्तिउ जे विसण्णु ॥५ किं पवणों कवणु वि दुप्पवेसु' गय वेणि वि रयणिहिँ तप्पवेसु ॥ ६ ॥ थिय जाल-गवक्खऍ दिट्ठ वाल णं मयण-वाण-धणु-तोण-साल ॥ ७ मारो वि मरइ विरहेण जाहे को वणेवि सक्कइ रूवु ताहे ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ ॥ तं वह पेक्वेवि परितोसिएण वरइत्तु पसंसिउ पहसिएण। 'तउ जीविउ सहलु अणन्त सिय जसु करें लग्गेसइ एह तिय' ॥९ [७] एत्थन्तरें अट्ठमी-चन्द-भाल मुहु जोऍवि चवइ वसन्तमाल ॥१ 'सहलउ तउ माणुस-जम्मु माएँ भत्तारु पहञ्जणु लद्ध जाएँ'॥२ तं णिसुणेवि दुम्मुह दुट्ट-वेस सिरु विहुणेवि भणइ वि मीसकेस ॥ ३ 'सोदामणिपहु पहु परिहरेवि थिउ पवणु कवणु गुणु संभरेवि ॥ ४ जं अन्तर गोपय-सायराहुँ जं जोइङ्गणहँ दिवायराहूँ॥ ५ जं अन्तरु केसरि-कुञ्जराहँ जं कुसुमाउह-तित्थङ्कराहँ ॥ ६ जं अन्तर गरुड-महोरगाहुँ जं अमरराय-पहरण-णगाहूँ॥७ जं पुण्डरीय-चन्दुज्जयाहुँ तं विजुप्पहु-पवणञ्जयाहुँ' ॥८ ॥ 65 पिक्खि वि. 6. 1 PS A °मुहु. 2 PS A कल्लइ. 3 P S A णाहि. 4 P s कित्तिउ, A कित्तउ. 5sतं. 7. 1s मद्धसियंद. 2 P सलहउ, 3 P S दुम्मह, दुम्महल. २ प्रहसित-मित्रेण. [६] १ मुखकमलेन. २ भना. ३ कामोऽपि. [७] १ मिश्रकेशी. २ विद्युत्प्रभु. ३ वज्रः, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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