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________________ १३८ पउमचरिउ [क०४,१-१0५,-. [४] सुरवर-किङ्करेहिँ उत्थरेंवि अहिमुहहिँ। लइ पसण्णकित्ति तिक्खेहिँ सिलिमुहेहि ॥ १ तो एत्थन्तरें दिढ-भुअ-डालें ___रावण-पित्तिएण सिरिमालें ॥२ । रहवर वाहिउ सुरवर-वन्दहों पढमउ 'भिट्ट महाहवें चन्दहों ॥३ कुन्त-विहत्थहों सीहारूढहाँ जयसिरि-पवर-णारि-अवगूढहाँ ॥४ 'अरे स-कलङ्क वङ्क महिलाणण पुरउ म थाहि जाहि मयलञ्छण' ॥५ तं णिसुणेवि ओखण्डिय-माणउ ल्हसिउ मियंक थक्कु जमराणउ ॥ ६ महिसारुदु दण्ड-पहरण-धरु तिहुअण-जण-मण-णयण-भयङ्कर ॥७ ॥ सो वि समुत्थरन्तु दणु-दुट्टउ किउ णिविसद्धे पाराउट्ठउ ॥ ८ ताम कुवेरु थक्कु सवडम्मुहु किउ णाऍिहिँ सो वि परम्मुहू ॥९ ॥ घत्ता ॥ सिरिमालि धणुद्धरु रणमुहें दुद्धरु धरेंवि ण सक्किउ सुरवरहि । संताउ करन्तउ पाण हरन्तउ वम्महु जेम कु-मुणिवरेंहि ॥ १० भग्ग कियन्ते समरें तो ससि-कुवेर-राएं। केसरि-कणय-हुअवहा मल्लवन्त-जाएं ॥ १ । तिणि वि भिडिय खत्तु आमेल्लेवि धय-धूवन्त महारह पेल्लेवि ॥ २ तीहि मि समकण्डिउँ रयणीयरु णं धाराहर-धणेहिँ महीहरु ॥३ ॥ सरवर-सरवरेहिँ विणिवारिय तिण्णि वि पुट्टि देन्त ओसारिय ॥४ अमर-कुमार णवर उद्धाइय रिउ जिह एक्कहिँ मिलेंवि पराइयं ॥५ लइय सिलीमुहेहिँ सिरिमालिं परम-जिणिन्द-चरण-कमलालिं॥६ अद्धससीहिँ सीस उच्छिण्णइँ णं णीलुप्पलाइँ विक्खिण्णइँ ॥७ जउ जउ जाउहाणु परिसक्का तउ तउ अहिमुहु को विण थक्कइ॥८ 25 णिऍवि कुमार-सिर छिजन्तइँ रण-देवयहें वलि 4 दिजन्तइँ ॥९ 4. 1 P लइअउ. 2 PS A सिलीमुहेहिं. 3 P°विंदहो. 4 A पढमुभिट्ट. 5 PS अखंडिय. 6 A मयंकु. 7 P marginally, 'रणे' पाठे; A रणे. 8 P 3 णाराएं. 9 PS रणउहे. 10 P कुमुणिवरहुं, कुमुणिवरहो. b. 1A भग्ग. 2 PS कियंत. 3 °रायणं. 4 5 °आयेणं. 5 PS A मामेल्लिवि. 6 P SA पेल्लिवि.7 A समकुंडियउ. 8 PS जमजीह एक्किहि. 9A पधाइय. 10 PS सिरिमालें. 11 चरणकमलाहिं. 125 सीसह. 13 PS वि. [४] १ समूहस्य. २ भेड. ३ भालिहितस्य. [५]१'तिण्णि वि मिडिय' इति सम्बन्धः. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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