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________________ 5 13 20 १३२ 26 उ णारउ कहि मि हङ्गणेण " ' पर - गूढपुरिस ण विसन्ति जेम एत्तडिय परोपरु वोल जाव पुर- रावि हु संथवन्तु रण- दुग्ग-परिग्गह-महि नियन्तु वहुसंथ - बुद्धि-णीउ सरन्तु स-सणे समाच्छिउ कवि वइसण दिणु संवाहुँ थोरु पुज्जेपिष्णु कैप्पिणुं गुण-सयाइँ तं मन्ति-वयणु पडिवण्णु तेण सिक्खas पुरन्दरु किं पि जाम 'ओसारेंवि दिज्जइ कण्ण-जाउ आवेसइ इन्दहों तणउ दूउ सो भेउ करेसइ णरवरा हूँ सहुँ तेण महुर-वंयणेहिं तेव सो थोवर्ड तुहुँ पुणु पवलु अज्जु एत्थु जें अवसरें संगी में संकु मरु-जगे दसाणण याराँ तहाँ मइँ पउमचरिउ वुच्चइ चित्तङ्गेण तं कवणु दुल Jain Education International / [6] चित्तङ्गङ कोड तक्खणेण ॥ १ गउ णारउ रावण भवणु ताम ॥ २ परिरक्खहि खन्धावारु 'सोड || ३ चवीस- पवर-गुण-सार-भूउ ॥ ४ सुग्गी-मुह - विज्जाहराहँ ॥ ५ वोलिज सन्धि ण होइ जेव ॥ ६ आवग्गड जें लइ हरेवि रज्जु ॥ ७ सङ्किर्ज तो पुणु असक्कु ॥ ८ ww ॥ घत्ता ॥ जं पइँ विहँ रक्खियउ । परम - भेउ ऍहु अक्खिय' ॥ ९ [8] [ क०८, १९९,१-१० सेणावर वृत्तु दसाणणेण ॥ १ परिरक्खहि खन्धावारु तेम ॥ २ चित्त स- सन्दणु आउ ताव ॥ ३ णक्खन्तोमालियहन्तिं-वन्तु ( ? ) ॥ ४ उत्तरहों पडुत्तरु चिन्तवन्तु ॥ ५ मारिच्चि भव इसइ तुरन्तु ॥ ६ fue पासु परिन्दों करें धरेवि ॥ ७ चूडामणि कण्ठउ कड दोरु ॥ ८ पुणु पुच्छर 'वहु पमाणु काइँ' ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ 'किं देवों सीसइ परेंण ॥ जं विदि दिवाण' ॥ १० ण 8. 1 A सावु. 2 A वयणेण. 3P SA वोलिजइ. 4 Ps थोडउ 5 Ps वि. 6 Ps संगम. 7 A सक्किजइ. 8Ps विप्पहु . 9. 14 पुरपरवहारि. 2 P पहु, marginally records बहु. 3 P संछबंद; marginally records संभवंतु, A सत्थवंतु. 4 P °तिबंद 5A दुग्गयडिंभहं. 6s ° भवणि, 4 भवण. 7s सालणहु. 8 A पासे 9PS संवाद 10 P कणउ 11 Ps डोरु. 12 A अपि. 13 A चित्तंगे. 14 A देवहूं. 15 A दुलंघु. [८] १ सर्व्वम्. २ समर्थः . [९] बहुविचार - बुद्धिः २ ताम्बूलः ३ कथयित्वा . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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