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________________ क०६, १-९;७, १-९] सोलहमो संधि [६] पारासरु पभणइ 'विहि मणोज्जु णउ एके मन्तिऍ रज-कज्जु' ॥१ पिसुणेण वृत्तु 'वेणि वि ण होन्ति अवरोप्पर घडेंवि कु-मन्तु देन्ति' ॥२ कउंटिलें वुच्चइ 'कवण भन्ति तिण्णि वि चेयारि वि चारु मन्ति' ॥३ मणु चवइ 'गरुअ वारहहुँ वुद्धि णर्ड एके विहिँ तिहिँ कज-सिद्धि'॥४ तं णिसुणेवि पभणइ अमरमन्ति 'अइसुन्दरु जइ सोलह हवन्ति' ॥५ 'भिगुणन्दणु वोल्लइ 'वुद्धिवन्तु अकिलेसें वीसहिँ होइ मन्तु॥६ तं णिसुणेवि चवइ सहासणयणु विणु मन्ति-सहासे मन्तु कवणु ॥७ अण्णहाँ अण्णारिस होइ बुद्धि अकिलेसें सिज्झइ कज्ज-सिद्धि' ॥८ ॥ धत्ता ॥ जयकारिउ सबहिं तो समउ दसासें 'अम्हहुँ केरी बुद्धि जइ । सुन्दर सन्धि सुराहिवइ ॥९ [७] वुह अत्थसत्थे पभणन्ति एव कहिँ लब्भइ उत्तम सन्धि देव ॥१ एक्कु वि मालिहें सिरु खुवि घित्तु अण्णु वि जइ रावणु होइ मित्तु ॥२. 15 तो तउ परमेसर कवण हाणि अहि असइ तो वि सिहि महर-वाणि॥३. जइ साम-भेय-दाणेहिँ जि सिद्धि तो दण्डे पउञ्जिऍ कवर्णं विद्धि ॥ ४ . अच्छन्ति वालि-रण संभरेवि• सुग्गीव-चन्दकर कुद्ध वे वि ॥५ णल-णील ते वि हियवएँ असुद्ध सुबन्ति णिरारिउ अत्थ-लुद्ध ॥ ६ - . खर-दूसणा वि णिय-पाण-भीय कज्जेण जेणं चन्दणहि णीय ॥ ७ ...॥ माहेसरपुरवइ-मरुगरिन्द अवमाणेवि बसिकिय जिह गइन्द ॥ ८ ॥घत्ता ॥ आएहिँ उवाऍहिँ दहवयण-णिहेलणु भेइज्जन्ति गराहिवइ । जाइ दूउ चित्तङ्गु जई' ॥९ 6. 1 PS मंतिहिं. 25 विणि मि. 3 P चडेवि, घिडिवि. 4 P कुमंति. 5 P कंउदालें, marginally 'कउटल्लिं' पाठे; s कउंदाले. 6 A वि तिणि. 7 PS हुंति. 8 A कउ. 9 Ps पभणित, A पभणई. 7. 1 PS सस्थे अस्थ. 2 A उत्तर. 3 P S °दाणे. 4 P दंड, दंडि. 5 PS पउंजेवि. 6 PS कवणु. 7 8 चंदकुर, A चंदनल. 8 णिराहिउ. 9 A केण. 10 P S अवमाणमि. [६] १ बृहस्पतिः. २ शुकः. [७] १ सर्पः. २ मयूरः. ३ सहस्रकिरण, ४ भो इन्द्र ( ? ). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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