________________
१२७
क०१४, १-९, १५, १-९] पण्णरहमो संधि
[१४] जइ कारणु वहरि सिद्धऍण णयरें धण-कणय-समिद्धऍण ॥१ तो कवडेण वि "इच्छामि" भणु पुण्णालि असच्चि दोसु कवणु ॥२ छुडु केम वि विज समावडउ उवरम्भ तुज्झु पुणु मा वडउ' ॥३ तं णिसुणेवि गउ दहगीउ तहिँ मज्जणयहाँ णिग्गय दूइ जहिँ ॥४ देवाइँ वत्थई ढोइय
आहरण. रयणज्जोइयइँ॥५ केऊर-हार-कडिसुत्ताइँ णेउरई कडय-संजुत्ताइँ ॥ ६ अवरइ मि देवि तोसिय-मणेण आसाल-विज मग्गिय खणण ॥७ ताएँ वि दिण्ण परितुट्टियाएँ णिय हाणि ण जाणिय मुद्धियाएँ ॥८
॥ धत्ता ॥ ताव विसालिय आसालिय णहें गजन्ति पराइय । तं विजाहरु णलकुव्वरु मुऍवि णाइँ सिय आइय ॥९
[१५] गय दूई किउ कलयलु भ.हिँ परिवेढिउ पुरवरु गय-धडेंहिँ ॥१ सण्णहेंवि समरें णिच्छिय-मणों 'णलकुव्वरु भिडिउ विहीसणहों ।। २ । वलु वलहाँ महाहवें दुजयहाँ रहु रहहाँ गइन्दु महागयहाँ ॥३ हउ हयहाँ णराहिवु णरवरहीं पहरण-धरु वर-पहरण-धरहाँ ॥४ चिन्धिउ चिन्धियहाँ समावडिउ 'वइमाणिउ वइमाणिहें भिडिउ ॥ ५ तहिँ तुर्मुलें जुज्झें भीसावणेण जिहं सहसकिरणु रण रावणेण ॥ ६ तिह 'विरहु करेविणु तक्खणेण णलकुव्वरु धरिउ विहीसणेण ॥ ७ ॥ सहुँ पुरण सिद्ध तं सुअरिसणु उवरम्भ ण इच्छइ दहवयणु ॥८
॥घत्ता
॥
सो जे पुरेसरु समउ सरम्भऍ
णलकुव्वरुणियय केर लेवाविउँ । उवरम्भऍ रज्जु स ई भु जाविउ ॥ ९
14. 15 वइरिहि. 2 P S सिद्धिएण. 3 P S आसालि. 4 A णलकूवरु,
15. 1 This pāda is missing in P. 2 A णलकूवरु. 3 P S तुम्बले. 4 P जह. 5A करेवि पहरेवि खणेण. 6s भिडिउ. 7 PS लेवाविअउ, A लेवावि विउ. 8 P सयइ, सयं 9 P S भुंजावियउ.
[१५] १ विमाणारूढः. २ संग्रामे (?). ३ रथरहितः.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org