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________________ १२६ पउमचरिउ [क० १२, १-९,१३, १-९ [१२] तं णिसुणेवि 'चित्तमाल चवइ __ 'मइँ होन्तिऍ काइँ ण संभवइ ॥१ आएसु देहि छुडु एत्तडउ ऍउ सुन्दरि कारणु केत्तडउ ॥ २ तुह रूवहाँ रावणु होइ जइ लइ वट्टइ तो एत्तडिय गइ' ॥३ ' तं णिसुणेवि मणहर-अहरयलु उवरम्भहें विहसिउ मुह-कमलु ॥ ४ 'हले हले सहि ससिमुहि हंस-गइ सो सुहउ ण इच्छइ कह वि जइ ॥ ५ आसाल-विज तो देहि तहों अण्णु वि वजरहि दसाणणहों ॥ ६ वुच्चइ रहनु भंड-लिह-लुहणु इन्दाउहु अच्छइ सुअरिसणु' ॥ ७ तं णिसुणेवि दूई णिग्गइय लकेसावासु णवर गइय ॥ ८ ॥ घत्ता ॥ कहिउ दसासहों सुर-तासंहों जं उवरम्भऍ वुत्तउ । 'एत्तिउ दाहण तुह विरहेण सामिणि मरइ णिरुत्तउ ॥ ९ [१३] उवरम्भ समिच्छहि अज्जु जइ तो जं चिन्तहि तं संभवइ ॥१ Is आसाली सिज्झइ पुरवरु वि सुअरिसणु चक्कु णलकुव्वरु वि' ॥२ तं णिसुणेवि सुट्ट वियक्खणहाँ अवलोइउ वयणु विहीसणहों ॥ ३ पइसारिय दूई मजणऍ थिय वे वि सहोयर मन्तणऍ ॥४ 'अहो साहसुपभणइ पहु मुयवि जं महिल करइ तं पुरिसु ण वि ॥५ दुम्महिल जि भीसण जम-णयरि दुम्महिल जि असणि जगन्त-यरि ॥ ६ " दुम्महिल जि स-विस भुयङ्ग-फड दुम्महिल जि वइवस-महिस-झड ॥ ७ दुम्महिल जि गरुय वाहि णरहों दुम्महिल जि वग्घि मझें घरहो' ॥८ ॥ घत्ता॥ भणइ विहीसणु सुह-दसणु एत्थु एउ ण घट्टइ । सामि णिसण्णहों णउ अण्णहों भेयहाँ अवसरु वट्टइ ॥९ ___ 12. 1 PS सुणेवि विचित्तमाल. 2 P S तुव. 3 PS A मणहरु. 4 A उवरंभए वियसिउ. 5 P S लंकेसहो पासु. 6 PS सुरसंतासहो. 7 PS डाहेण. ____13. 1 PS मुहु जोइउ पहुहे ( P पहुहें ) विहीसणहो. 2 A पभणई महिसुव वि. 3 P °फड. 4 A °विसम'. 5 P °झडु. [१२] १ भटानां रेखा. [१३] १ (P's reading) रावणेन. २ विद्युत्. ३ अन प्रस्तावे एतद् वचनं न वक्तुं घटते. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jainelibrary.
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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