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________________ पउमचरिउ [क०८, १-९,९,१-१० [८] ते वयणे मुक्कु विसुद्ध-मइ माहेसर-पवर-पुराहिवइ ॥१ णिय-णन्दणु णियय-थाणे थवेवि परियणु पट्टणु पय संथवेंवि ॥ २ णिक्खन्तु खणखें विगय-भउ रावणु वि पयाणउ देवि गउ ॥ ३ परिपेसिउ लेहु पहाणाहों अणरण्णहाँ उज्झहें राणाहों ॥४ मुह-वत्त कहिय 'दहमुर्हेण जिउ । लइ सहसकिरणु तव-चरण थिउ' ॥५ तं णिसुणेवि णरवइ हरिसियउ ईसीसि विसाउ पदरिसियउ ॥ ६ संगाम-सहासेंहिँ दूसहहाँ सिय सयल समप्पेवि दसरहहों ॥ ७ सहसत्ति सो वि णिक्खन्तु पहु अण्णु वि तहों तणउ अणन्तरहु ॥ ८ ||घत्ता ॥ ताम सुकेसेंण लड्डेसेंण जमहर-अणुहरमाणउ । 'जागुं पणासेवि रिउ तासेवि मगहहँ मुक्कु पयाणउ ॥९ [९] णारउ धीरेंवि मरु वसिकरेंवि तहों तणिय तणये करयले धरेंवि ॥१ ॥णव णव संवच्छर तेत्थु थिउं पुणु दिण्णु पयाणउ मगहु गउ ॥ २ 'पेक्खेवि रावणु आसकियउ महु महुरपुराहिउ वसिकियउ ॥३ जसु चमरें अमरें दिण्णु वर सूलाउहु सयलाउर्ह-पवरु ॥ ४ णियं तणय तासु लाएवि करें थिउ णवर गम्पि कइलास-धरें ॥५ मन्दाइणि दिट्ठ मणोहरियं ससिकन्त-णीर-णिज्झर-भरियं ॥ ६ 20 गय-मय णइँ मइलिय-उभय-तड स-तुरङ्गम-कुञ्जर हाय भड ॥ ७ वन्देप्पिणु जिणवर-भवणारे दहमुहु दक्खवइ णिवाणा ॥८ 'इह सिद्ध सिद्धि-मुहकमल-अलि जिणवर भरहेसरु वाहुवलि ॥ ९ ॥ घत्ता ॥ एत्थु सिलासणे अत्तावणे अच्छिउ वालि-भडारउ । जसु पय-भारेण गरुयारेण हउँ किउ कुम्मायारउ' ॥ १० ___8. 1 A °ठाणे ठेवेवि. 2 P विसाउ वि. 3 s A जगु. 4 A णासेवि. 5A विद्धंसेवि. 65 गंगह. 9. 1 PS धीय. 2 A ठिउ. 3 A पुणु विषण पत्त नउ तहो रमिउं. 4 A transposes the Padas of this line. 5 A समरे. 6 PS A सुलाउहु. 7 8 पिय. 8 PS मणोहरिए. 9 PS °भरिए. 10 P S आतावणे. " [८] १ यज्ञं विध्वंस्य. . [९] १ गङ्गा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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