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INTRODUCTION
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132 गणियारिऍ वाल, णिय किक्किन्धहाँ पासु 132 अभाषयदिमा बालां ततोऽन्य व्योमचारिणम्।
किह । सरि-सलिल-रहलऍ कलहंसहाँ कल- धात्री सदःसरस्यब्ज हंसीमुत्कलिका यथा॥ 6 415 हसि जिह ॥
7 3 10 133 भान्ति स्वम्भ विहडन्ति म। 7 9 4a. 133 मञ्चस्य स्तम्भमादाय बभजांसे परः कपिः ।
6 441a 134 लकाहिउ पत्तु सुकेसु ताम। 7 5 6b. 134 सुकेशो राक्षसाधिपःxxx आयातः।
6450a.
VP. सुकेसिराया समणुपत्तो। 6 18 36 135 किऍ पाराउट्टएँ वल-समुहै। 7 6 10. 135 तेनैकेन विना सैन्यमित्तश्चेतश्च तद्गतम् ।
6454a 136 में विजयसीहु हउ भुय विसाल, 186 निहतश्च तव भ्राता येन पापेन वैरिणा
सो जिउ कियन्त-दन्तन्तरालु ॥ 797 प्रापितोऽसौ महानिद्रां ॥ 6 498 137 घण-पडलई णिए वि। 7 10 2a. 137 दृष्टा शरदि तोयदम्। 6503a. 138 सहसारकुमारहों देवि रज्जु । '7 10 3a. 138 सहस्रार सुतं राज्ये स्थापयित्वा । 6 505a. 139 किकिन्धाहिवो वि।
139 गतो मेरुं किष्किन्धो वन्दितुं जिनम् । 6 508 गउ वन्दणहत्तिएँ मेरु सो-वि॥7 10 40. 140 जोवइ व पईहिय-लोयणेहिँ, 140 (a) निर्झरैईसतीवायमट्टहासेन भासुरः। हसह व कमलायर-आणणेहिँ ॥
6513b. गायह व भमर-महुअरि-सरेहि,
(b) अभ्युत्थानं करोतीव नमनं च नमत्तः । पहाइ व णिम्मल-जल-णिज्झरेटिं।
65156. वीसमइ व ललिय-लयाहरेहि, पणवह व फुल्ल-फल-गुरुभरेहि ॥
710 1-8 141 महु महिहरो वि किक्किन्धु वुत्तु । 141 पर्वतोऽपि स किष्किन्धः प्रख्यातः xx
7 11 1a. . पूर्व तु मधुरित्यासीत् ॥ 6522 142 पइट लङ्क।
7 14 85. 142 प्रविष्टास्ते ततोलकाम्। 6565a. 143 छब्बीस वि सहसई पेक्खणयहुँ। 143 षडविंशति सहस्राणि च योषिताम् । 7 256
8166. 144 अट्ठायाल-सहस-परजुवइहि। 8 1 8b. 144 चत्वारिंशत्सहाष्टाभिः सहस्राणि च योशितां
724b. 145 तं मालि सुमालि करें धरह । 82 9b. 145 अथ मालिन मित्यूचे सुमाली। 7 41a. 146 मोकल-केस णारि। 8 3 1b. 146 वनिताः xx मुक्तकेश्यः। 747b. 147 विद्ध णिडाले मालि णाराएं। 8 9 10. 147 मालिनो भालदेशेऽथ x शरं - निचखान ।
785 148 रुहिरायम्विरु। 8 9 8a. 148 रक्ताहणितदेहम् ।
7860. 149 वाम-पाणि वणे देवि अखन्तिऍ, 149 संस्तम्भ्य वेदनां क्रोधान्मालिनाऽप्यमरोत्तमः
भिण्णु पिडाले सुराहिउ सत्तिएँ। 8 9 4 ललाटस्य तटे शक्या हतः ॥ 786 150 तं णिसुनेंवि गउ चोइउ जाहि, 150 तद् वधार्थ गतं शक्र अनुमार्गेण गत्वरं ।
• ससहरु पुरउ परिटिड तावहिं॥ 8 10 6. उवाच प्रणतः सोमः॥ 791 151 महु मादेसु देहि परमेसर । 8 10 78. 151 स्वयं मे यच्छ शासनम्। 792b. 152 इन्दीवरच्छि पङ्कय-वयणि । 922b. 152 नीलोत्पलेक्षणां पद्मवक्त्राम् । 7 1500.
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