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प्रस्तावना |
१ देवानन्दमहाकाव्य' - रचनासमय सं० १७२७ । यह काव्य मारवाड के सादडी नगरमें बनाया था ऐसा ग्रन्थकारने स्वयं लिखा है और उसकी प्रतिलिपि गवालियर में स्वयं ग्रन्थकारने की है, यह भी स्वयं लिखा है ।
२ मातृकाप्रसाद - रचनासमय १७४७ | यह ग्रन्थ अध्यात्मविषयक है । इसमें 'ॐ नमः सिद्धम्' के वर्णाम्नायपर विवरण किया है और 'औं' शब्दका रहस्य स्पष्टरूपसे बताया है ।
प्रस्तुत ग्रंथ धर्मनगर' (धरमपुरी) में बना है ऐसा स्वयं ग्रन्थकारने लिखा है ।
३ चन्द्रप्रभा - रचनासमय १७५७ | यह ग्रन्थ व्याकरणका है। हेमचंद्ररचित सिद्धहेमचंद्र नामक व्याकरणको कौमुदीके रूपमें बनाकर प्रस्तुत ग्रंथ बनाया है । इसकी रचना आगरा में हुई थी ऐसा खुद ग्रन्थकारने ग्रन्थांत में कहा है । ग्रन्थका परिमाण आठ हजार श्लोक है ।
४ शांतिनाथचरित्र - रचनासमय नहीं लिखा है । इस ग्रन्थ में नैषध काव्यकी समस्यापूर्ति है । विषय, भगवान् श्रीशांतिनाथजीका जीवन वर्णन है। यह ग्रंथ विजयप्रभसूरिके शासन में बनाया गया था, इससे प्रतीत होता है कि ग्रंथका निर्माण काल १७१० के बादका । क्यों कि वीरविजयमुनि, १७१० में आचार्य होकर विजयप्रभसूरि बने थे ।
५ दिग्विजय महाकाव्य - रचनासमय नहीं ज्ञात हुआ । तो भी इसमें विजयप्रभसूरिका जीवन-वर्णन है, इससे यह ग्रन्थ भी १७१० के बादका ही होना चाहिए । इसमें तेरह सर्ग है; और ग्रन्थकारके बनाए हुए सब काव्यों में यह सबसे बडा है ।
६ सप्तसन्धानमहाकाव्य - रचनासमय १७६० । यह काव्य बडा चमत्कारी है । इसमें एक ही श्लोकमें सात पुरुषों की कथा कही गई है । ऋषभदेव, शांतिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, महावीर स्वामी, कृष्णचंद्र और रामचंद्र - इन सात महापुरुषोंका जीवन चरित्र इस काव्यके प्रत्येक लोकमें वर्णित हैं । ग्रन्थप्रमाण अनुष्टुप् श्लोक ४४२ ' है । ग्रन्थकार कहते हैं कि- "आचार्य हेमचंद्रका बनाया हुआ सप्तसन्धानकाव्य था परंतु वह अब नहीं मिलता है इस कारण हमने यह नया बनाया है" । महाकवि धनंजयने द्विसन्धान महाकाव्य बनाया है । परंतु द्विसन्धानकाव्यसे यह सप्तसन्धानकाव्य विशेष चमत्कृतिपूर्ण है ।
१ " मुनि - नयन- अश्व- इन्दुमिते वर्षे हर्षेण सादडीनगरे । ग्रन्थः पूर्णः समजनि विजयदशम्यामिति श्रेयः " ॥ - देवानन्द महाकाव्य, प्रान्तप्रशस्ति । २ देखो सातवां टिप्पण ।
३ देखो आठवां टिप्पण ।
४ नैषधकाव्यकी उक्त समस्यापूर्तिका नमूना इस प्रकार है
“श्रियामभिव्यक्तमनोऽनुरक्तता विशालसालत्रितयश्रिया स्फुटा ।
तया बभासे स जगत्रयीविभुर्ज्वलत्प्रतापावलिकीर्तिमण्डलः” ॥ १ ॥ - शांतिनाथ चरित्र, प्रारम्भिकश्लोक |
" गच्छाधीश्वरहीरहीर विजयानाये निकाये धियां प्रेष्यः श्रीविजयप्रभाख्यसुगुरोः श्रीमत्तपाख्ये गणे ।
शिष्यः प्राज्ञमणेः कृप।दिविजयस्याशास्यमानाग्रणीश्चक्रे वाचकनाममेघविजयः शस्यां समस्या मिमाम् " ॥ - शांतिनाथ चरित्र, प्रतिसर्गप्रान्तप्रशस्ति । ५ देखो नवम टिप्पण ।
६ " सूत्रतः सूत्रिता ग्रन्थे द्विचत्वारिंशदन्विता । चतुःशतीह काव्यानां सप्तसन्धाननामनि” ॥
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"श्रीहेमचन्द्रसूरीशैः सप्तसन्धानमादिमम् । रचितं तदलाभे तु स्तादिदं तुष्टये सताम्” ॥ - सप्तसंधान महाकाव्य प्रांतभाग |