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आन्तर परिचय माटेना बाधक नियमोनुं विधान । उत्सर्ग-अपवादना घडतर विशेना मूळ उद्देश तरफ जोता बन्नेयतुं महत्त्व के मुख्यपणुं एक समान छे । एटले सर्वसाधारणने सहजभावे एम लाग्या विना नहि रहे के एक ज हेतु माटे आq द्वैविध्य केम १ । परंतु जगतनुं सूक्ष्म रीते अवलोकन करनारने ए वस्तु समजाया विना नहि रहे के-मानवजीवनमा सहज भावे सदाने माटे जे शारीरिक अने खास करीने मानसिक निर्बळताए अधिकार जमाव्यो छे ए ज पा द्वैविध्यनु मुख्य कारण छ । आ परिस्थितिने प्रत्यक्ष जोया जाण्या पछी धर्म, नीति, संघ, समाज, प्रजा आदिना निर्माताओ पोतानी साथे रहेनार अने घालनारनी बाम अने आंतर परिस्थितिने ध्यानमा न ले अने साधक-बाधक नियमोनुं विधान न करे तो ए धर्म, नीति, राज्य, प्रजा, संघ वगेरे वहेलामां वहेला ज पडी भागे । आ मौलिक सूक्ष्म वस्तुने लक्षमा राखी जैन संघर्नु निर्माण करनार जैन स्थविरोए ए संघ माटे उत्सर्गअपवादनुं निर्माण करी पोताना सर्वोच्च जीवन, गंभीर ज्ञान, अनुभव अने प्रतिभानो परिचय आप्यो छे ।
उत्सर्ग-अपवादनी मर्यादामांथी ज्यारे परिणामिपणुं अने शुद्ध वृत्ति परवारी जाय छे त्यारे ए उत्सर्ग अने अपवाद, उत्सर्ग-अपवाद न रहेतां अनाचार अने जीवनना महान् दूषणो बनी जाय छ। आ ज कारणथी उत्सर्ग-अपवादनुं निरूपण अने निर्माण करवा पहेलो भाष्यकार भगवंते परिणामी, अपरिणामी अने अतिपरिणामी शिष्यो एटले डे अनुयायी. मोनुं निरूपण कयु छे (जुओ गाथा ७९२-९७ पृ. १४९-५०) अने जणाव्यु छ केयथावस्थित वस्तुने समजनार ज उत्सर्गमार्ग अने अपवादमार्गनी आराधना करी शके छ । तेम ज आवा जिनाज्ञावशवर्ती महानुभाव शिष्यो-त्यागी अनुयायीओ ज छेद आगमज्ञानना अधिकारी छे अने पोताना जीवनने निराबाध राखी शके छे । ज्यारे परिणामिभाव अदृश्य थाय छे अने जीवनमा शुद्ध सात्त्विक साधुताने बदले स्वार्थ, स्वच्छंदता अने उपेक्षावृत्ति जन्मे छे त्यारे उत्सर्ग अपवादनुं वास्तविक ज्ञान अने पवित्र-पावन वीतरागधर्मनी आराधना दूर ने दूर ज जाय छे अने अंते आराधना करनार पडी भागे छ ।
आटलो विचार कर्या पछी आपणने समजाशे के उत्सर्ग अने अपवादनु जीवनमा शुं स्थान छे अने एनुं महत्त्व केवु, केटलुं अने कई दृष्टिए छे ? । प्रस्तुत महाशास्त्रमा अनेक विषयो अने प्रसंगोने अनुलक्षीने आ अंगे खूब खूब विचार करवामां आव्यो छे । आंतर के बाह्य जीवननी एवी कोई पण बाबत नथी के जे अंगे उत्सर्ग-अपवाद लागु न पडे । ए ज कारणथी प्रस्तुत महाशास्त्रमा कहेवामां आव्यु छे के " जेटला उत्सर्गों-मौलिक नियमो छे तेटला अने ते ज अपवादो-बाधक नियमो छे अने जेटला बाधक नियमो-अप. वादो छे तेटला अने ते ज मौलिक नियमो-उत्सों छे' (जुओ गा० ३२२)। आज
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