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ग्रंथकारोनो परिचय
३० ३. (क) आव०नि० गाथा ७६३ अने ७७४ मां जणाव्यु छे के-आर्य वज्रस्वामीना जमाना सुधी कालिकसूत्रादिनी जुदा जुदा अनुयोगरूपे वहेंचणी थई न हती पण ते बाद ए वहेचणी थई छे, अने ए देवेंद्रवंदित भगवान् आर्यरक्षिते काळ अने पोताना दुर्बलिकापुष्यमित्र नामना विद्वान् शिष्यनी स्मरणशक्तिना हासने जोईने करी छे. (जुओ उल्लेख १ क अने ग).
(ख) दशवकालिकनियुक्ति गाथा ४ मां अनुयोगना पृथक्त्व अपृथक्वनो उल्लेख छ, तेमां जणाव्युं छे के-आ शास्त्रनो समावेश चरणकरणानुयोगमां थाय छे. (जुओ उल्लेख ३).
(ग) ओघनियुक्ति गाथा २ मां एनो पोतानो समावेश चरणकरणानुयोगमा होवार्नु जणाव्यु छे. ( उल्लेख २).
४. आव०नि० गाथा ७७८ थी ७८३ मां अने उत्त० नि० गाथा १६४ थी १७८ सुधीमा सात निह्नवो अने आठमा दिगंबरमतनी उत्पत्ति अने तेमनी मान्यताओगें वर्णन करवामां आव्यु छे, जेमांना घणाखरा चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहुस्वामी पछी थएला छे. अर्थात् एकंदर श्रमणभगवान महावीरना निर्वाण पछीना सात सैका सुधीमां बनेल प्रसंगो आ बन्ने नियुक्तिग्रंथमा नोधाएला छे. ( जुओ उल्लेख १ घ तथा ५ ख ).
५. सूत्रकृतांगनियुक्ति गाथा १६४ मां द्रव्यनिक्षेपने लगता त्रण आदेशो अर्थात् त्रण मान्यताओनो उल्लेख छे, जे चतुर्दशपूर्वधर भगवान् भद्रबाहु पछी थएल स्थविर आर्य सुहस्ती आदि अर्वाचीन स्थविरोनी मान्यतारूप होई तेनो उल्लेख नियुक्तिग्रन्थमां संगत न होई शके ( उल्लेख ६).
उपर जणावेल बाबतो चतुर्दशपूर्वविद् भद्रबाहुकृत नियुक्तिप्रन्थोमां होय ए कोई पण रीते घटमान न कहेवाय. पूज्य श्रीशांत्याचार्यना कहेवा प्रमाणे : नियुक्तिकार त्रिकाळज्ञानी हता एटले नियुक्तिमां ए बावतोनो उल्लेख होवो अयोग्य नथी' ए वातने आपणे मानी लईए तेम छतां नियुक्तिग्रन्थोमा नाम लईने श्रीवत्रस्वामीने नमस्कार, अनुयोगनी पृथक्ता, निवादिनी उत्पत्ति, पोताना पछी उत्पन्न थएल आचार्योनी मान्यताओनो संग्रह आदि बाबतोनो उल्लेख कोई पण रीते संगत मानी शकाय नहि; कारण के
(क) कोईपण महान् व्यक्ति “ नमो तित्थस्स, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो सव्वसाहूगं" इत्यादि वाक्यो द्वारा धर्म प्रत्येनो अथवा गुणो प्रत्येनो आदर प्रगट करवा माटे सामान्य नमस्कार करे ए अयोग्य नथी, पण एज व्यक्ति पोता करतां लघु दरजे रहेल व्यक्तिने नाम लईने नमस्कार करे ए तो कोईपण रीते उचित न गणाय अने एम बनी शके पण नहि. चौद पूर्वधर भगवान् भद्रबाहुस्वामी, ओघनियुक्तिना मंगलाचरणमां कयुं छे तेम गुणो प्रत्ये बहुमान दर्शाववा खातर दशपूर्वधर आदिने के सामान्यतया साधुसमुदायने नमस्कार करे एमां अणघटतुं कशुंज नथी; पण तेओश्री स्थविर आर्य वनस्वामीने “ तं वइरिसिं नमसामि, वंदामि अजवरं” ए रीते साक्षात् नाम लई
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