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________________ ग्रंथकारोनो परिचय भद्रबाहुस्वामी.........कल्पनामधेयमध्ययनं नियुक्तियुक्तं नियंढवान् । " बृहत्कल्पपीठिका श्रीक्षेमकीर्तिसूरिअनुमन्धिता टीका-पत्र १७७ । ___ अहीं जे छ शास्त्रीय उल्लेखो आपवामां आव्या छे ए बधाय प्राचीन मान्य आचार्यवरोना छे अने ए " नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वविद् भगवान् भद्रबाहुस्वामी छे " ए मान्यताने टेको आपे छे. आ उल्लेखोमां सौथी प्राचीन उल्लेख आचार्य श्रीशीलांकनो छे. जे विक्रमनी आठमी शताब्दिना उत्तरार्धनो अथवा नवमी शताब्दिना आरंभनो छे. आ करतां प्राचीन उल्लेख खंतपूर्वक तपास करवा छतां अमारी नजरे आवी शक्यो नथी. उपर नोंधेल छ उल्लेखो पैकी आचार्य श्रीशान्त्याचार्यसूरिनो उल्लेख बाद करतां बाकीना बधा य उल्लेखोमा सामान्य रीते एटली ज हकीकत छे के-" नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वविद् भद्रवाहुस्वामी छे-हता " पण श्रीशान्त्याचार्यना उल्लेखमां एटली विशेष हकीकत छे के" प्रस्तुत ( उत्तराध्ययनसूत्रनी ) निर्यक्तिमा केटलांक उदाहरणो अर्वाचीन अर्थात् चतुर्दशपूर्वधर नियुक्तिकार भगवान् भद्रबाहुस्वामी करतां पाछळना समयमा थएला महापुरुषोने लगतां छे, माटे ' ए कोई बीजानां कहेलां-उमेरेला छे' एवी शंका न लाववी; कारण के भगवान् भद्रबाहुस्वामी चतुर्दशपूर्वविद् श्रुतकेवळी होई त्रणे काळना पदार्थोने साक्षात् जाणी शके छे. एटले ए उदाहरणो कोई वीजानां उमेरेला छे एवी शंका केम थई शके ?" नियुक्ति आदिमां आवती विरोधास्पद धावतोनो रदियो आपवा माटेनी जो कोई मजबूतमा मजवून दलील कहो के शास्त्रीय प्रमाण कहो तो ते आ एक श्रीशान्त्याचार्य आपेल समाधान छे. अत्यारे मोटे भागे दरेक जण मात्र आ एक दलीलने अनुसरीने ज संतोष मानी ले छ, परंतु उपरोक्त समाधान आपनार पूज्य श्रीशान्तिसूरि पोते ज खरे प्रसंगे उंडा विचारमा पडी घडीभर केवा थोभी जाय छ ? अने पोते आपेल समाधान खामीवाळु भासतां केवा विकल्पो करे छे, ए आपणे आगळ उपर जोईशं. उपर छ विभागमा आपेल उल्लेखोने अंगे अमारे अहीं आ करतां विशेष काई ज चर्चवानुं नथी. जे कांई कहेवानुं छे ते आगळ उपर प्रसंगे प्रसंगे कहेवामां आवशे. हवे अमे उपरोक्त अर्थात् " नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वविद् भद्रबाहुस्वामी छे " ए मान्यताने बाधित करनार प्रमाणोनो उल्लेख करी ते पछी तेने लगती योग्य चर्चा रजू करीशुं. १. ( क ) मूढणइयं सुयं कालियं तु ण णया समोयरंति इहं । अपुहुत्ते समोयारो, नत्थि पुहुत्ते समोयारो ॥ ७६२ ॥ जावंति अजवइरा, अपुहुत्तं कालियाणुओगे य । तेणाऽऽरेण पुहुत्तं, कालियसुय दिट्टिवाए य ॥ ७६३ ॥ * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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