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ग्रंथकारोनो परिचय परंतु पंचकल्पभाष्यनी चूर्णिमा तेओश्रीने निशीथसूत्रना प्रणेता तरीके पण जणाव्या छे. ए उल्लेख अहीं आपवामां आवे छे" तेण भगवता आयारपकप्प-दसा कप्प-ववहारा य नवमपुष्पनीसंदभूता निज्जूढा।"
पंचकल्पचूर्णी पत्र १ ( लिखित ) अर्थात्-ते भगवाने ( भद्रबाहुस्वामीए ) नवमा पूर्वमाथी साररूपे आचारप्रकल्प, दशा, कल्प अने व्यवहार ए चार सूत्रो उद्धयाँ छे-रच्यां छे.
___ आ उल्लेखमां जे आयारपकप्प नाम छ ए निशीथसूत्रनुं नामान्तर छे. एटले अत्यारे गणातां छ छेदसूत्रो पैकी चार मौलिक छेदसूत्रोनी अर्थात् दशा, कल्प, व्यवहार अने निशीथसूत्रनी रचना चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामीए करी छे.
तित्थोगालिय प्रकीर्णक,-जेनी रचना विक्रमनी पांचमी शताब्दिनी शरूआतमां थएली होवानुं विद्वद्वर्य श्रीमान् कल्याणविजयजी “ वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना" (पृ० ३०, टि. २७ )मां सप्रमाण जणावे छे,-तेमां नीचे प्रमाणे जणान्यु छ
सत्तमतो थिरबाहू जाणुयसीसुपडिच्छिय सुबाहू । नामेण भद्दबाहू अविही साधम्म सद्दोत्ति ( ? ) ॥ १४ ।। सो वि य चोद्दसपुवी बारसवासाइं जोगपडिवन्नो ।
सुतत्तेण निबंधइ अत्थं अज्झयणबंधस्स ॥ १५ ॥ तीर्थोद्गारप्रकीर्णकना प्रस्तुत उल्लेखमां चतुर्दशपूर्वधर भगवान् भद्रबाहुस्वामीने सूत्रकार तरीके ज वर्णव्या छे, परंतु तेथी आगळ वधीने 'तेओ नियुक्तिकार' होवा विष के तेमना नैमित्तिक होवा विषे सूचना सरखीये करवामां आवी नथी.
___ उपर ढूंकमा जे प्रमाणो नोंधायां छे ए उपरथी स्पष्ट रीते समजी शकाशे के-छेद. सूत्रोना प्रणेता, अंतिम श्रुतकेवली स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामी ज छे. आ मान्यता विषे कोईने कशो य विरोध नथी. विरोध तो आजे ' नियुक्तिकार कोण ? अथवा क्या भद्रबाहुस्वामी ?' एनोज छे, एटले आ स्थळे ए विषेनी ज चर्चा अने समीक्षा करवानी छे. ___ जैन संप्रदायमा आजे एक एवो महान् वर्ग छे अने प्राचीन काळमां पण हतो, जे " नियुक्तिओना प्रणेता चतुर्दश पूर्वविद् छदसूत्रकार स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामी ज छे" ए परंपराने मान्य राखे छे अने पोपे छे. ए वर्गनी मान्यताने लगतां अर्वाचीन प्रमाणोने-निरर्थक लेखनुं स्वरूप मोटें थई न जाय ए माटे-जता करी, ए विषेना जे प्राचीन उल्लेखो मळे छे ए सौनो उल्लेख कर्या पछी “ नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी, चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्य भद्रबाहुस्वामी नथी पण ते करतां कोई जुदा ज स्थविर छे. " ए प्रामाणिक मान्यताने लगतां प्रमाणो अने विचारसरणी रजू करवामां आवशे.
१. प्राचीन मान्यता मुजब दशाश्रुतस्कंध अने कल्पने एक सूत्र तरीके मानवामां आवे अथवा कल्प भने व्यवहारने एक सूत्ररूपे मानो लईए तो चारने बदले त्रण सूत्रो थाय,
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