SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ जयन्तु वीतरागाः॥ आमुख बृहत्कल्पसूत्रनो पांचसो भाग बहार पड्या पछी घणे लांबे गाळे आजे तेनो छट्ठो भाग विद्वानोना करकसलमा उपहृत करवामां आवे छे । आ विभाग साथे आखो बृहत्कल्पग्रंथ संपूर्ण थाय छे । प्रस्तुत महाशास्त्रनुं सांगपूर्ण संशोधन मारा परमपूज्य शिरश्छत्र परमाराध्य गुरुदेव श्री १००८ श्रीचतुरविजयजी महाराज अने में, एम अमे गुरु-शिष्ये मळीने कयु छे । परन्तु आजे प्रस्तुत विभागर्नु प्रकाशन जोवा तेओश्री संसारमा विद्यमान नथी । तेम छतां प्रस्तुत महाशास्त्रना संशोधनमां आदिथी अंत सुधी तेओश्रीनो वधारेमा वधारे हिस्सो छे, ए सत्य हकीकत छे । प्रस्तुत विभागनी प्रस्तावनामा नियुक्तिकार अने तेमना समय विषे प्रमाणपुरस्सर घणी लांबी चर्चा करीने जे निर्णयो रजू करवामां आठया छे ते विषे जे महत्त्वनी नवी हकीकतो मळी आवी छे तेनो उल्लेख अहीं करी देवो अति आवश्यक छ । प्रस्तुत छट्ठा विभागनी प्रस्तावनाना चोथा पृष्ठमां " नियुक्तिकार चतुर्दशपूर्वधर स्थविर आर्यभद्रबाहुस्त्रामी छे " ए मान्यताने रजू करता जे उल्लेखो आपवामां आव्या छे तेमां सौथी प्राचीन उल्लेख आचार्य श्रीशीलांकनो छे। परन्तु ते पछी आ ज मान्यताने पुष्ट करतो भगवान् श्रीजिनभद्र गणि क्षमाश्रमणनो एक उल्लेख विशेषावश्यक महाभाष्यनी स्वोपज्ञ टीकामांथी मळी आव्यो छे। नियुक्तिओ, तेनुं प्रमाण अने रचनासमय. ' नियुक्तिकार श्रीभद्रबाहुस्वामी, वाराहीसंहिताना प्रणेता श्रीवराहमिहिरना नाना भाई हता' ए जातनी किंवदन्तीने लक्षमा राखी श्रीवराहमिहिरे पोताना पंचसिद्धान्तिका ग्रन्थना अंतमा उल्लेखेली प्रशस्तिना आधारे में मारी प्रस्तावनामा नियुक्तिकार अने नियुक्तिओनी रचना विक्रमना छट्ठा सैकामां थयानी कल्पना करी छे ए बराबर नथी, ए त्यारपछी मळी आवेली वीगतोथी निश्चित थाय छे, जे आ नीचे आपवामां आवे छे । खरतरगच्छीय युगप्रधान आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिसंस्थापित जेसलमेरना प्राचीनतम ताडपत्रीय ज्ञानभंडारमाथी स्थविर आर्य वज्रस्वामिनी शाखामां थएल स्थविर श्रीअगस्त्य. सिंहविरचित दशवैका लिकसूत्रनी प्राचीन चूर्णि मळी आवी छे । आ चूर्णी, आगमोद्धारक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy