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________________ ११ पूज्यपाद गुरुदेवना जीवन साथे छगडानो खूब ज मेळ रह्यो छे । अने ए अंकथी अंकित वर्षोमां तेमणे विशिष्ट कार्यो साध्यां छे। तेओश्रीनो जन्म वि. सं. १९२६मां थयो छे, दीक्षा १९४६ मां लीधी छे, (हुं जो भूलतो न होउं तो) पाटणना जैन भंडारोनी सुव्यवस्थानुं कार्य १९५६ मां हाथ धयुं हतुं, " श्रीआत्मानंद जैन ग्रन्थरत्नमाला" ना प्रकाशननी शरुआत १९६६ मा करी हती अने सतत कर्तव्यपरायण अप्रमत्त आदर्शभूत संयमी जीवन वीतावी १९९६ मा तेओश्रीए परलोकवास साध्यो छे । अस्तु, हवे पूज्यपाद गुरुदेव श्रीमान् चतुरविजयजी महाराजनी इंक जीवनरेखा विद्वानोने जरूर रसप्रद थशे, एम मानी कोई पण जातनी अतिशयोक्तिनो ओप आप्या सिवाय ए अहीं तद्दन सादी भाषामां दोरवामां आवे छे। जन्म-पूज्यपाद गुरुदेवनो जन्म वडोदरा पासे आवेल छाणी गाममा वि. सं. १९२६ ना चैत्र शुदि १ ने दिवसे थयो हतो। तेमनुं पोतानुं धन्य नाम भाई चुनीलाल राखवामां आव्युं हतुं । तेमना पितानुं नाम मलुकचंद अने मातानुं नाम जमनाबाई हतुं । तेमनी ज्ञाति वीशापोरवाड हती। तेओ पोता साथे चार भाई हता अने त्रण बहेनो हती । तेमनुं कुटुंब घपुंज खानदान हतुं । गृहस्थपणानो तेमनो अभ्यास ते जमाना प्रमाणे गूजराती सात चोपडीओ जेटलो हतो । व्यापारादिमां उपयोगी हिसाब आदि बाबतोमां तेओश्री हुशियार गणाता हता। धर्मसंस्कार अने प्रवज्या-छाणी गाम स्वाभाविक रीतेज धार्मिकसंस्कारप्रधान क्षेत्र होई भाई श्रीचुनीलालमां धार्मिक संस्कार प्रथमथी ज हता अने तेथी तेमणे प्रतिक्रमणसूत्रादिने लगतो योग्य अभ्यास पण प्रथमी ज को हतो। छाणी क्षेत्रनी जैन जनता अतिभावुक होई त्यां साधु-साध्वीओ- आगमन अने तेमना उपदेशादिने लीधे लोकोमा धार्मिक संस्कार हम्मेशां पोषाता ज रहेता । ए रीते भाई श्रीचुनीलालमां पण धर्मना दृढ संस्कारो पड्या हता। जेने परिणामे पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय अनेकगुणगणनिवास शान्तजीवी परमगुरुदेव श्री १००८ श्रीप्रवर्तकजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी महाराजश्रीनो संयोग थतां तेमना प्रभावसम्पन्न प्रतापी वरद शुभ हस्ते तेमणे डभोई गाममां वि. सं. १९४६ना. जेठ वदि १० ने दिवसे शिष्य तरीके प्रव्रज्या अंगीकार करी अने तेमर्नु शुभ नाम मुनि श्रीचतुरविजयजी राखवामां आव्युं । विहार अने अभ्यास-दीक्षा लीधा पछी तेमनो विहार पूज्यपाद गुरुदेव श्रीप्रवर्तकजी महाराज साथे पंजाब तरफ थतो रह्यो अने ते साथे क्रमे क्रमे अभ्यास पण आगळ वधतो रयो। शरुआतमा साधुयोग्य आवश्यकक्रियासूत्रो अने जीवविचार आदि प्रकरणोनो अभ्यास कों। ते वखते पंजाबमां अने खास करी ते जमानाना साधुवर्गमां व्याकरणमा मुख्यत्वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002515
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 06
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages424
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size20 MB
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