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प्रातःस्मरणीय गुणगुरु पुण्यधाम पूज्य गुरुदेवनुं
हार्दिक पूजन
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पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय गुणभंडार पुण्यनाम अने पुण्यधाम तथा श्रीआत्मानंद जैन ग्रन्थरत्नमालाना उत्पादक, संशोधक अने सम्पादक गुरुदेव श्री १००८ श्रीचतुरविजयजी महाराज वि. सं. १९९६ ना कार्तिक वदि ५नी पाछली रात्रे परलोकवासी थया छे, ए समाचार जाणी प्रत्येक गुणग्राही साहित्यरसिक विद्वानने दुःख थया सिवाय नहि ज रहे। ते छतां ए वात निर्विवाद छे के-जगतना ए अटल नियमना अपवादरूप कोई पण पाणधारी नथी। आ स्थितिमा विज्ञानवान् सत्पुरुषो पोताना अनित्य जीवनमा तेमनाथी बने तेटलां सत्कार्यों करवामां परायण रही पोतानी आसपास वसनार महानुभाव अनुयायी वर्गने विशिष्ट मार्ग चिंधता जाय छे ।
पूज्यपाद गुरुदेवना जीवन साथे स्वगुरुचरणवास, शास्त्रसंशोधन अने ज्ञानोद्धार ए वस्तुओ एकरूपे वाई गई हती । पोताना लगभग पचास वर्ष जेटला चिर प्रव्रज्यापर्यायमा अपवादरूप,-अने ते पण सकारण,-वर्षो बाद करीए तो आखी जिंदगी तेओश्रीए गुरुचरणसेवामांज गाळी छे । ग्रंथमुद्रणना युग पहेलां तेमणे संख्याबंध शास्त्रोना लखवा-लखाववामा अने संशोधनमां वर्षों गाळ्यां छे । पाटण, वडोदरा, लींबडी आदिना विशाळ ज्ञानभंडारोना उद्धार अने तेने सुरक्षित तेम ज सुव्यवस्थित करवा पाछळ वर्षो सुधी श्रम उठाव्यो छे । श्रीआत्मानंद जैन प्रन्थरत्नमाळानी तेमणे बराबर त्रीस वर्ष पर्यंत अप्रमत्तभावे सेवा करी छ । आ. जै. प्र. र. मा.ना तो तेओश्री आत्मस्वरूप ज हता ।
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