SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० गाथा ५१५२-५६ ५१५७-६३ ५१६४ ५१६५ ५१६६-६७ ५१६८-७१ ५१७२-८९ ५१९०-९६ Jain Education International बृहत्कल्पसूत्र पंचम विभागनो विषयानुक्रम । विषय उपघातपंडकना पहेला भेद वेदोपघातपंडकनुं स्वरूप - अने ते विषे हेमकुमारनुं उदाहरण तथा वीजा भेद उपकरणोपघातपंडकनुं स्वरूप अने ते विषे एक जन्ममां पुरुष, स्त्री, नपुंसक एम त्रण वेदनो अनुभव करनार कपिलनुं दृष्टान्त अजाणपणे पंडकने दीक्षा अपाइ होय तेने ओळखवानी रीत, तेनी चेष्टाओ तेम ज एवाने जाण्या पछी राखवाथी लागता दोषो २ क्लीबनुं स्वरूप ३ वातिकनुं स्वरूप तच्चनिकनुं दृष्टान्त कुंभी, ईर्ष्यालु, शकुनी, तत्कर्मसेवी, पाक्षिकापाक्षिक, सौगन्धिक, आसिक्त, वर्धित, चिप्पित आदि नपुंसकोनुं स्वरूप जेम स्त्री-पुरुषो ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय, तपस्या आदि द्वारा विकारोने रोके छे तेम नपुंसको पण विकारोने रोकी शके ते छतां नपुंसकमाटे प्रव्रज्यानो निषेध म करवामां आवे छे ए जातनी शिष्यनी शंका अने आचार्यो उत्तर अने ते प्रसंगे वत्सआम्रनुं दृष्टान्त अपवादपदे पंडकादिने प्रव्रज्या आपवामां आवे त्यारे तेने केवो वेष आदि आपवो, केवी रीते साधुसामाचारी शीखववी, सूत्रादिनो अभ्यास केम कराववो, तेने वेष आदिनो त्याग केम कराववो इत्यादिने लगती सामाचारी [ गाथा ५१८५ - सर्वज्ञभाषितसूत्रनां लक्षणो ] ५ - ९ मुंडापनादिसूत्र पंडक, वातिक अने क्लीब ए जेम प्रत्राजनाने माटे अयोग्य छे तेम मुंडन, शिक्षा, उपस्थापना, एकमंडलीमां भोजन अने साथै रहवाने माटे पण अकल्पिक छे For Private & Personal Use Only पत्र १३७०-७२ १३७२-७३ १३७३ १३७४ १३७४ १३७५ १३७६-८० १३८०-८१ www.jainelibrary.org
SR No.002514
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 05
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages340
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy