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________________ ३२ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । गाथा पत्र ३९४०-४१ १०८०-८१ ३९४२-४७ १०८१-८२ ३९४८-४९ १०८२-८३ विषय हिंसादि करनार ज्ञानी अने अन्नानी होवाने कारणे कर्मबंधमां ओछावत्तापणुं ३ भावद्वार हिंसादि करनार क्षायिक क्षायोपशमिक औपशर्मिक आदि विविध भावमां वर्त्ततो होवाने कारणे कर्मबंधमां विचित्रता ४ अधिकरणद्वार अधिकरणनी विविधताने लीधे कर्मबंधमां विविधता, निर्वर्तना निक्षेपणा संयोजना अने निसर्जनाधिकरणनुं स्वरूप अने परिणामनी विचित्रताने कारणे कर्मबंधमां विविधता होवा छतां अधिकरणनिमित्तक कर्मबंधनी विचित्रता कया कारणे अहीं कहेवामां आवी ? एनुं निरूपण ५ वीर्यद्वार हिंसादि करनारना देहादि बलने कारणे कर्मबंधमां विविधता अने देहादिवलनी हानि-वृद्धिने लगतां पदस्थानको हिंसा-अहिंसाविषयक वादस्थलनो उपसंहार वस्त्रने फाडवा माटे शिष्ये बतावेला प्रकारो अने ते सामे आचार्यनो विरोध अयोग्य रीते वस्त्र फाडवाथी वस्त्र अपलक्षणुं अने नहीं राखवा लायक थइ जाय छे ए बताववा माटे लक्षणयुक्त अश्व मागनार द्रमकनुं उदाहरण वस्त्रोना प्रमाण वगेरेना निरूपणविषयक द्वारगाथा १ प्रमाणद्वार जिनकल्पिक अने स्थविरकल्पिकनो उपधि अने तेनी संख्या जिनकल्पिकना जघन्य मध्यम उत्कृष्ट उपधिनी संख्या अने तेनुं माप ३९५०-५१ ३९५२-६० १०८३-८५ १०८६ १०८७-९३ ३९६२-८९ ३९६२-६५ १०८७-८८ ३९६६-६८ १०८८ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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