SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । २३ गाथा विषय निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने वाडानी बहार काढेलो सागारिकनो संसृष्ट पिण्ड लेवो कल्पे। त्रीजा सागारिकपारिहारिकसूत्रनी व्याख्या ९९९ ३५९६-३६०२ त्रीजा सागारिकपारिहारिकसूत्रनी विस्तृत व्याख्या ९९९-१००० ३६०३-१५ १६ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीविषयक चोधुं सागारिकपारिहारिक सूत्र १००१-४ जे निर्ग्रन्थ अथवा निम्रन्थी वाडानी बहार काढेला सागारिकना असंसृष्ट पिंडने संसृष्ट करे अथवा तेमाटे सम्मति आपे तेने लगतुं प्रायश्चित्त चोथा सागारिकपारिहारिकसूत्रनी व्याख्या १००१ सागारिकना असंसृष्ट पिंडने संसृष्ट करवाथी अथवा तेमाटे सम्मति आपवाथी लागता दोषो अने तेने अंगेनुं अपवादपद १००१-४ ३६१६-४२ १००४-११ १००४-९ ३६१६ आहृतिका-निर्दृतिकाप्रकृत सूत्र १७-१८ १७ आहृतिकासूत्र कोइने त्यांथी सागारिकने माटे भाणुं आव्यु होय तेने सागारिक ले तो तेमांनो पिण्ड साधुने न कल्पे पण सागारिक ते भाणाने न ले तो तेमांनो अपातो पिण्ड साधुने लेवो कल्पे आहृतिका-निर्दृतिकाप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे संदष्टक नामनो सम्बन्ध __आहृतिकासूत्रनी व्याख्या आहृतिकानो अर्थ अने द्रव्य क्षेत्र काल अने भाव एम चार प्रकारनी आहृतिकानुं स्वरूप 'द्रव्यतः प्रतिगृहीता न भावतः' इत्यादि आहृतिकाविषयक चतुर्भगी पैकी पहेला चोथा भंगने लक्षीने प्रस्तुत सूत्र छ एम कहेनार लोभी अने अजाण शिष्य प्रत्ये आचार्यनो प्रत्युत्तर १००४ १००५ ३६१७-२४ ३६२५-३४ १००७-९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy