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बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम ।
गाथा ३२२२-३९
३२२२-२४
विषय ४९ बीजूं विचारभूमी-विहारभूमी सूत्र निर्ग्रन्थीने एकलीने रात्रे विचारभूमीए के स्वाध्यायभूमीए जQ कल्पे नहि पण वे त्रण चार आदि भेगा मळीने जर्बु कल्पे विचारभूमीए एकली जनार निर्ग्रन्थीने प्रायश्चित्त अने स्त्रीस्वभावनुं वर्णन निर्ग्रन्थीने योग्य उपाश्रयो अने तेने लगती यत. नाओ अने अपवाद निर्ग्रन्थीने योग्य विहारभूमीविषयक यतनाओ अने अपवाद
९०१
३२२५-३४
९०२-३
३२३५-३९
९०४-५
३२४०-८९
९०५-२१
३२४०-४३
३२४४-८९ ३२४४-५८
९०७-२१
आर्यक्षेत्रप्रकृत सूत्र ५० निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओना विहारयोग्य क्षेत्रनी मर्यादा आर्यक्षेत्रप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे संबंध प्रथम उद्देशानां ५० सूत्रो पैकी कयां कयां सूत्रो द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव साथे संबंध धरावे छे तेने लगतो विभाग
आर्यक्षेत्रसूत्रनी व्याख्या आर्यक्षेत्रसूत्रनी विस्तृत व्याख्या आर्यक्षेत्रविषयक प्रस्तुत सूत्रने अथवा संपूर्ण कल्पाध्ययन छेदशास्त्रने नहि जाणनार अथवा जाणवा छतां तेने आचारमा नहि मूकनार आचार्यनुं अयो. ग्यपणुं अने ते विषे सापर्नु,-तेना माथाना अने तेनी पूंछडीना रमुजी संवादरूप,-दृष्टान्त अने तेनो उपनय-घटना [गाथा ३२५१-खसद्रुमशृगालनु आख्यानक गाथा ३२५२-वानर अने सुगृहिका (सुघरी) चकलीनुं संवादात्मक कथानक ] कल्पाध्ययनने नहि जाणनार आचार्य- अयोग्यपणुं दर्शाववा वैद्यपुत्रनुं उदाहरण अने तेनी घटना
५०७-११
३२५९-६०
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