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गाथा
३०८६-९१
निर्मन्थ-निर्मन्थीओए सार्थवाहनी अनुज्ञा लेवानो विधि अने भिक्षा, भक्तार्थना, वसति, स्थंडिल आदिने लगती यतनाओनुं स्वरूप अध्वगमनोपयोगी अध्यकल्पनुं स्वरूप
३०९२-९८
३०९९-३१०३ अध्वकल्पनो उपयोग निर्दोष ? के आधाकर्मिक पिण्डादिनुं लेवं निर्दोष ? ए प्रकारनी शिष्यनी शंका अने तेनुं समाधान आदि
३१०४-३८
३१३९-३२०६
३१३९
३१४०-४१
३१४२-४८
३१४९-५०
३१५१-५४
३१५५-५७
३१५८-६७
बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम |
विषय
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अध्वगमनने लगता अशिव, दुर्भिक्ष, राजद्रिष्ट आदि व्याघातो - अडचणो अने तेने लगती यतनाओ विस्तृत वर्णन
संखडीप्रकृत सूत्र ४७
निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने रात्रिसमये संखडिमां अथवा संखडिने लक्ष्यमा राखी क्यांय जवं कल्पे नहि संखडिप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै संबंध
संखडिसूत्रनी व्याख्या
'संखडि' पदनी व्याख्या अने तेमां जनार निर्मन्थनिर्ग्रन्थीओने प्रायश्चित्त
दिवस अने पुरुषसंख्या द्वारा संखडिना प्रकारो अने तेने लगतां प्रायश्चित्तो
संखडि - जमण ज्यां धतुं तेवां शैलपुरनुं ऋषितडाग, भरुचना कुण्डलमेण्ठ व्यन्तरनी यात्रा, प्रभास, अर्बुदाचल, प्राचीनवाह आदि पुरातन ऐतिहासिक स्थानोनुं वर्णन
मायाकपट, लोलुपता आदि कारणोने लीधे संखडिमां जनारने लागतां प्रायश्चित्तो
संखडिवाळा गाम आदिमां जतां रस्तामां लागता मिध्यात्व, उड्डाह, विराधना आदि दोषोनुं स्वरूप संखडिवाळा गाममां पहोंच्या पछी वसति, परतीथिंकतर्जना, बिलधर्म, वादित्रशब्द, गीतशब्द,
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पत्र
८६७-६९
८६९-७०
८७१-७२
८७३-८०
८८१-९७
८८१
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८८१-८३
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८८४-८५
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