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प्रासंगिक निवेदन।
१३ छता मो० ले० ता० वर्गनी प्रतिओ अने त० डे० वर्गनी प्रतिओ परस्पर घणुं खरं मळती ज रहे छे ज्यारे भा० प्रति अने कां० प्रति परस्पर जुदा वर्गनी तेमज अतिशय पाठभेदवाळी छतां परस्पर घणी वार मळती रहे छे । आम छतां पाठभेदनी बाबतमां केटलीए वार एक वीजा वर्गनी प्रतिओ सेळभेळ पण थई जाय छे । अर्थात् केटलीक वार अमुक सरखा पाठो अथवा पाठभेदो त० डे० कां० प्रतिमां होय तो केटलीए वार भा० मो० ले० प्रतिमां एकसरखा पाठो होय छे; केटलोक वखत भा० त० डे० प्रतिमां सरखा पाठभेदो होय ज्यारे केटलोक वखत मो० ले० कां० प्रतिमा समानता धरावता पाठो होय छे । आ बधुं छतां घणी वार एम पण बन्युं छे के केटलाक पाठो बधीये प्रतिओमा एकसरखा होय ते छतां मात्र अमुक एक वर्गनी प्रतोमा ज त्यां पाठभेद होय छे । आ बधाय समविपम पाठभेदोने अमे पाने पाने नोंघेला छे जेने विद्वानो स्वयं जोई शकशे । आ बधा पाठभेदो पैकीना केटलाक पाठभेदोने क्यारेक चूर्णिनो तो कोइक वार विशेषचूर्णिनो अने केटलीक वार उभयनो टेको होय छे; ते उपरांत केटलीक वार अमुक एक ज स्थळना जुदा जुदा पाठभेद पैकी अमुक पाठने चूर्णिनो टेको होय अने अमुक पाठने विशेषचूर्णिनो टेको होय एम पण बनवा पाम्युं छे; आ बधेय ठेकाणे अमे चूणि विशेषचूर्णिना पाठो सरखामणी माटे टिप्पणमां नोंध्या छ ।
प्रस्तुत ग्रन्थमा विद्वानोए पोतानी इच्छानुसार हस्तक्षेप करवाने लीधे एनी जुदी जुदी हस्तलिखित प्रतिओमां अनेक प्रकारना पाठभेदो वधी पड्या छे । जेवा के-केटलीक वार अवतरणो उमेरायां छे, क्यारेक गाथाना पाठभेदो कराया छे, केटलोक वखत चूर्णी आदिना पाठो उमेराया छे, कोइक वार गाथाओने नियुक्तिगाथा पुरातनगाथा वगेरे जुदा जुदा' निर्देशो कराया छे, केटलीक वार वृत्तिमा विशदता लाववामाटे पाठभेद् अने उमेरो करायेल छे अने केटलेक ठेकाणे गाथाओनो क्रमभेद करायो छे. आ बधायने अंगे अमारे घj घणुं कहेवानुं छे जे अमे प्रस्तुत ग्रन्थना छेल्ला विभागमा स्पष्टता पूर्वक जाणावीशुं। ___ आ सिवाय सूत्रोनी संख्यादर्शक अंको, प्रकृतोनो विभाग वगेरे जे जे नवीन बाबतोनो अमे उमेरो कर्यो छे तेविषे पण अमारे जे जे कहेवानुं छे ते अंतिम विभागमा स्पष्टरीते कहीशुं ।
अहीं मात्र अमे एटलुंज निवेदन करीए छीए के अनेक विद्वानोना मनस्वी हस्तक्षेपने परिणामे जन्मेला पाठभेदोनो विवेक करवामां अत्यंत सावधानी तेम ज तटस्थता जाळववा छतां अमारी स्खलना थएली जणाय तो सुज्ञ विद्वानो क्षमा करे।
निवेदक-गुरु-शिष्य मुनि चतुरविजय-पुण्यविजय
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