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गाथा
१२२३-४०
१२४१-७९
१२४१-४९
१२५०-७९
१२८० - १३७१ १२८१-८४
बृहत्कल्पसूत्र द्वितीय विभागनो विषयानुक्रम |
विषय
काक्षरसूत्र जिनकल्पिकसूत्र, स्थविरकल्पिकसूत्र, आर्यासूत्र, कालसूत्र, वचनसूत्र आदि सूत्रोना प्रकारो] ४. जिनकल्पिकनो अनियतवास भावी आचार्यने देशदर्शननी आवश्यकता अने तेथी थता लाभो
५ जिनकल्पिकनी निष्पत्ति
जिनकल्पिके कल्प स्वीकारवा पहेलां तैयार करेलो शिष्यसमुदाय
देशदर्शनमाटे नीकळेला भावी आचार्यना गुणोनी ख्याति सांभळी तेमनी पासे अन्य समुदायना श्रमणोनी ज्ञानादिमाटे उपसंपदा
उपसंपदा स्वीकारवाने लगती सामाचारी उपसंपदाना प्रकारो, उपसंपदा स्वीकारनार अने आपनारनी स्थिरता - सहनशीलता - सामर्थ्य, उपसंपदा लेनारने आलोचना अने सामाचारीनुं कथन, उपसंपदा स्वीकारनारनो स्वीकार अने तेमने वाचना, जे निमित्ते उपसम्पदा लीधी होय ते विषयमां प्रमाद करनार शिष्योने आर्द्र छगण - लीलुं छाण, घट्टना, रुञ्चना, पत्रज्ञात, दुष्ट अश्व, अने चक्षुरोगी राजानां दृष्टान्तो द्वारा तेमनी फरजनुं भान कराव अने प्रायश्चित्तो
[ गा० १२४३-४९ – भावी आचार्यनी तेमना गुणो द्वारा प्रसिद्धि
गा० १२५९-६० – स्रुषा - पुत्रवधूनुं दृष्टान्त ] ६ जिनकल्पिकनो विहार
जिनकल्प स्वीकारवा पहेलां जिनकल्पिकनी आत्मश्रेय माटे विचारणा
जिनकल्प स्वीकारवामाटे विधि अने तेनां उपकरणो
१२८५
१२८६ - १३५७ जिनकल्पिकनी भावनाओ
पत्र
३८१-८४
३८४-९५
३८४-८६
३८६-९५
३९५-४१६
३९५-९६
३९६
३९७-९८