SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा ९२४-३५ ९२४-२७ ९३६-५० ९५१-१००० ९५१-५७ ९५८ ९५९-६० ९६१-१००० ९६१-६६ ९६१-६३ ९६४ बृहत्कल्पसूत्र द्वितीय विभागनो विषयानुक्रम | विषय प्रलम्बादिना ग्रहणी लागता आज्ञाभंग, अनवस्था, मिथ्यात्व अने आत्म-संयमविराधना ए चार दोपोनुं विस्तृत वर्णन अपराध करनार करतां आज्ञाभंग करनार वधारे दोषपात्र छे ए विषये 'राजमान्य छ पुरुषोनी रक्षामाटे राजानी घोषणा नुं उदाहरण प्रलम्बादिना ग्रहणने अंगे बतावेल विध विध प्रकानां प्रायश्चित्तो आचार्यादि गीतार्थ अगीतार्थ पैकी कोने कोने लक्षीने छे ? एनुं कथन [ गाथा ९३६ टीकामां- आचार्यविषयक अभंगी गाथा ९३७ - ३९ - गच्छनी संभाळ नहि लेनार आचार्यनो अज्ञान अने व्यसनी राजानी जेम त्याग गाथा ९४० - सात व्यसनो गाथा ९४१ - आचार्य विषयक चतुभंगी ] गीतार्थना विशिष्ट गुणो-लक्षणो गीतार्थना विशिष्ट गुणोनुं स्वरूप गीतार्थने प्रायश्चित्त नहि लागवानां कारणो 'कृतयोगी' पदनी व्याख्या उत्सर्ग अपवादना बलाबलने विचारी अपवादने सेवनार गीतार्थं योगिपणुं अने ते गीतार्थनी तीर्थकर साथै सरखामणी गीतार्थी तीर्थकर साथ सरखामणी १ श्रुतकेवली गीतार्थनी केवली साथै समानता द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावविषयक, तेम ज सचित्त, अचित्त, मिश्र, अनन्त वनस्पति, प्रत्येक वनस्पति आदि प्रज्ञापनीय-वर्णवी शकाय तेवा पदार्थोनो तेनां विशिष्ट लक्षणो द्वारा निर्णय करवानी अपेक्षाए श्रुतकेवली गीतार्थ अने केवलज्ञानीनुं सरखाप प्रज्ञापनीय अप्रज्ञापनीय पदार्थोनुं प्रमाण पत्र १५ २९२-९५ २९५ - ३०० ३००-१५ ३००-२ ३०२ ३०२-३ ३०३-१५ ३०३-५ ३०३ ३०४
SR No.002511
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 02
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages400
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy