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___६४२ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण . ३४. नियति द्वात्रिंशिका- सिद्धसेनसूरि, मुनि श्री भुवनचन्द्रजी के
गुजराती अनुवाद और विवरण सहित, जैन साहित्य अकादमी, गाँधी
धाम, कच्छ, २००२ ३५. नियुक्तिसंग्रह- भद्रबाहुस्वामी, श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला
(लाखाबावल), श्रुतज्ञान भवन-४५, दिग्विजय प्लॉट, जामनगर,
१९८९ ३६. न्यायकुमुदचन्द्र- प्रभाचन्द्र, माणिक्य दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला,
हीराबाग, पो. गिरगाँव, मुम्बई, १९३८ एवं १९४१ ।। ३७. न्यायागमानुसारिणी- द्वादशारनयचक्र पर सिंहसूरिकृत टीका,
विवरणार्थ द्रष्टव्य द्वादशारनयचक्र। ३८. परमतेज- श्री हरिभद्रसूरीश्वर विरचित, श्री 'ललित विस्तरा' पर
विवेचन (भाग प्रथम), दिव्यदर्शन ट्रस्ट, द्वारा कुमार पाण वि. शाह,
६८, गुलालवाड़ी, तीजे माले, मुम्बई। ३९. परीक्षामुख- माणिक्यनन्दि कृत, स्याद्वाद महाविद्यालय, काशी ४०. पंच संग्रह- श्री मिश्रीमल जी महाराज, आचार्य श्री रघुनाथ जैन
शोध संस्थान, जोधपुर ४१. पंचास्तिकाय- आचार्य कुन्दकुन्द, साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार
विभाग, श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट, ए-४,
बापूनगर, जयपुर ४२. पंचाध्यायी- पं. राजमल्ल विरचित, टीका सहित, श्री गणेश वर्णी
दिगम्बर जैन (शोध) संस्थान, वाराणसी ४३. पद्म पुराण- भारतीय ज्ञानपीठ, १८, इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोदी
रोड़, नई दिल्ली। ४४. प्रज्ञापना सूत्र- आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, २००१ ४५. प्रमाणनयतत्त्वालोक- वादिदेवसूरि, श्री तिलोकरत्न स्थानकवासी,
जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड, पाथर्डी (अहमदनगर) तृतीयावृत्ति, २००० ४६. प्रमेयकमलमार्तण्ड- प्रभाचन्द्र, श्री दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध
संस्थान, हस्तिनापुर, मेरठ (उत्तरप्रदेश)
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