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________________ xlvii १७० १७५ १७५ १७७ १७९ १८० १८६ १९१ जिनभद्रगणि द्वारा विशेषावश्यक भाष्य में स्वभाववाद का निरूपण एवं निरसन • हरिभद्रसूरि विरचित धर्मसंग्रहणि में स्वभावहेतुवाद का निरसन १७२ शास्त्रवार्ता समुच्चय में स्वभाववाद का खण्डन - हरिभद्रसूरि द्वारा स्वभावहेतुवाद का निरसन - टीकाकार यशोविजय द्वारा खण्डन में प्रस्तुत तर्क अज्ञात कृतिकार द्वारा निरूपण एवं निरसन अभयदेवसूरिकृत तत्त्वबोधविधायिनी टीका में स्वभाववाद का उपस्थापन एवं खण्डन बौद्ध दार्शनिक शान्तरक्षित द्वारा तत्त्वसंग्रह में स्वभाववाद का उपस्थापन एवं निरसन - जैनदर्शन में स्वभाव का स्वरूप एवं उसकी कारणता • आगम में स्वभाव निरूपण • भगवती सूत्र और उसकी वृत्ति में - स्थानांग सूत्र एवं उसकी वृत्ति में • सूत्रकृतांग टीका में दिगम्बर परम्परा में स्वभाव की चर्चा • स्वभाव-विभाव पर्याय के आधार पर स्वभाव का स्वरूप • स्वभाव के भेद - द्रव्य के आधार पर ० सामान्य ० विशेष पर्याय के आधार पर - वस्तु-देश-जाति-कालगत स्वभाव > निष्कर्ष १९५ १९७ २०६ १७ २०० २०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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