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नियतिवाद २७१
नियतरूपता आकस्मिक हो जाएगी अर्थात् किसी वस्तु का कोई नियतरूप सिद्ध न हो सकेगा। १३५
३. नियति के बिना मुद्द्र- पाक भी अशक्य
संसार में नियति के बिना मूंग का पाक भी नहीं देखा जाता, जैसा कि हरिभद्र सूरि कहते हैं
न चर्ते नियतिं लोके मुद्रपक्तिरपीक्ष्यते ।
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तत्स्वभावादिभावेऽपि नासावनियता यतः । ।
स्वभाव आदि भावों का व्यापार स्वीकार करने पर भी मूंगों का पकना अनियत होता है। नियति ही मूंग के पकने या न पकने में कारण होती है। ४. कार्य का सम्यक् निश्चय : नियति
दण्ड आदि सभी कारणों की उपलब्धि होने पर घट अवश्य होता है- ऐसा सम्यक् निश्चय नहीं हो सकता, क्योंकि दण्ड आदि सभी हेतुओं के होने पर भी अनेक बार प्रतिबन्धक कारणों से घटोत्पत्ति नहीं हो पाती। अतः दण्ड आदि के होने पर घटोत्पत्ति की केवल संभावना की जा सकती है, निश्चयात्मक रूप से नहीं कहा जा सकता है। इसलिए सम्यक् निश्चय के अभाव में कार्य के दृष्ट कारणों से कार्य की सिद्धि नहीं हो सकती, किन्तु 'जिसका होना नियत है वह होता ही है' यह सम्यक् निश्चय है, क्योंकि इसमें विपरीतता नहीं होती । अतः इस निश्चय से नियति में कार्य की जनकता की सिद्धि निर्बाध है।
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कोई यह प्रश्न करता है कि 'कार्य की उत्पत्ति के पूर्व कार्यार्थी को नियति का निश्चय नहीं होता है तो फिर कार्य के उत्पादनार्थ उसकी प्रवृत्ति कैसे होगी ? तब नियतिवादी उत्तर देते हैं कि कार्यार्थी की प्रवृत्ति नियति का ज्ञान हुए बिना ही होती है। वह 'कार्य की उत्पत्ति अवश्य होगी' इस बात के निश्चय से प्रवृत्त नहीं होता, वह तो यही सोचकर प्रवृत्त होता है कि यदि नियति होगी तो कार्य अवश्य ही होगा। अतः कार्य के लिए जो कुछ वह कर सकता है वह उसे करना चाहिए। अतः यह स्पष्ट है कि कार्यार्थी की प्रवृत्ति अविद्या से ही होती है, कार्य की सिद्धि तो नियतिवश सम्पन्न होती है। १३८
५. नियति बिना कार्य में सर्वात्मकता की आपत्ति
नियति के पक्ष में एक अन्य हेतु देते हुए हरिभद्रसूरि कहते हैं
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