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प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवश्यं भवति नृणां शभोऽशुभो वा। भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने
नाभाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः।। अर्थात् जो पदार्थ नियति के बल के आश्रय से प्राप्तव्य होता है वह शुभ या अशुभ पदार्थ मनुष्यों (जीवमात्र) को अवश्य प्राप्त होता है। प्राणियों के द्वारा महान प्रयत्न करने पर भी अभाव्य कभी नहीं होता है तथा भावी का नाश नहीं होता है।
नियति को साहित्य में भवितव्यता भी कहा गया है। वेद में नियतिवाद का प्रतिपादक कोई मन्त्र या सूक्त नहीं है, किन्तु वेद विवेचक पं. मधुसूदन ओझा ने अपरवाद के अन्तर्गत नियतिवाद का समावेश भी किया है। श्वेताश्वतरोपनिषद्, महोपनिषद् एवं भावोपनिषद् में नियामक तत्त्व के रूप में नियतिवाद का प्रतिपादन हुआ है। हरिवंशपुराण में "दुर्वारा हि भवितव्यता", "दुर्लंघ्यं हि भवितव्यता" इन उक्तियों से नियतिवाद की पुष्टि हुई है। रामायण में कहा गया है
नियति: कारणं लोके, नियति: कर्मसाधनम्। नियतिः सर्वभूतानां, नियोगेष्विह कारणम्।।
- किष्किन्धा काण्ड, सर्ग २५ श्लोक ४ . लोक में नियति सबका कारण है, नियति समस्त कार्यों का साधन है, समस्त प्राणियों को विभिन्न कार्यों में संलग्न करने में नियति ही कारण है। महाभारत में भी नियति की प्रस्तुति निम्नांकित शब्दों में हुई है
यथा यथाऽस्य प्राप्तव्यं, प्राप्नोत्येव तथा तथा। भवितव्यं यथा यच्च, भवत्येव तथा तथा।।
- महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय २२६, श्लोक १० अर्थात् पुरुष को जो वस्तु जिस प्रकार मिलने योग्य होती है, वह उसे उसी प्रकार प्राप्त कर लेता है। जो जिस प्रकार भवितव्य होता है वह वैसे घटित होता ही है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् में भी भवितव्य शब्द से युक्त दो सूक्तियाँ प्रसिद्ध हैं(१) भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र (२) भवितव्यता खलु बलवती।
' हरिवंशपुराण, ६१.७७ एवं ६२.४४
अभिज्ञानशाकुन्तलम्, १.१४ एवं द्रष्टव्य ६.९ से पूर्व गद्य।
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