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स्वभाववाद १४३ काँटों में तीक्ष्णता-नुकीलापन किसने पैदा किया, किसने उन काँटों को घिसकर पैना किया होगा? हरिण तथा पक्षियों के विचित्र स्वभाव किसने किए। पक्षियों के अनेक रंग के पर, उनकी मधुर पूजन, हिरण की सुन्दर आँखें, उसका छलाँगें भरकर कूदना- फाँदना ये सब स्वभाव से ही हैं। बृहत्संहिता में
बृहत्संहिता में जगदुत्पत्ति के प्रसंग में अनेक विकल्पों का उल्लेख करते हुए वराहमिहिर ने स्वभाववाद का भी उल्लेख किया है
कपिलः प्रधानमाह दव्यादीन् कणभुगस्य विश्वस्य।
कालं कारणमेके स्वभावमपरे जगुः कर्म।।५६ सांख्यशास्त्र के आचार्य कपिल इस जगत् का कारण प्रधान अर्थात् प्रकृति को कहते हैं। कणाद मुनि द्रव्यादि पदार्थों को जगत् का कारण बताते हैं। कोई पौराणिक 'काल' को जगत् का कारण मानते हैं। दूसरे विद्वान् स्वभाव को जगत् का कारण समझते हैं और मीमांसक कर्म को कारण जानते हैं। पंचतन्त्र में
वस्तु का स्व-गत भाव ही स्वभाव है। स्वभाव कभी परिवर्तित नहीं होता। लाखों प्रयत्न करने के बावजूद भी काले कौए को उजला नहीं बनाया जा सकता। विशेष बाहरी निमित्त के संयोग में रखने पर भी वस्तु अपना मूल स्वभाव नहीं छोड़ती। इन भावों को विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र में निम्न रूप में व्यक्त किया है।
स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा। सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम्।। यदि स्वाच्छीतलो वह्निः शीतांशुर्दहनात्मकः।
न स्वभावोऽत्र मानां शक्यते कर्तुमन्यथा।।५७ उपदेश से किसी के स्वभाव का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। जैसे अत्यधिक गरम हुआ पानी भी कुछ समय बाद पुनः अपने स्वभाव को अर्थात् शीतलता को प्राप्त हो जाता है। चाहे अग्नि शीतल हो जाए और चन्द्रमा आग उगलने लगे, किन्तु मनुष्य का स्वभाव परिवर्तन कर देना संभव नहीं है।
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