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________________ सहयोग से ही यह विशाल शोध-प्रबन्ध सम्पूणर्कता को प्राप्त हो सका है। प्रत्येक कठिनाई में उन्होंने अपने सुझाव और पुत्रीवत् स्नेह सम्बल से मुझे प्रेरित एवं उत्साहित किया है। अत: अपने "तातश्री" के स्नेह सहयोग के लिए मैं उनकी कृतज्ञ रहूँगी। संस्कृत विभाग के वरिष्ठतम आचार्य एवं कला संकाय के पूर्व अधिष्ठाता प्रो० श्रीकृष्ण जी शर्मा और संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो० नरेन्द्र जी अवस्थी का मुझे सदैव आशीर्वाद प्राप्त है। मधुसूदन ओझा शोध प्रकोष्ठ के पूर्व निदेशक डॉ. गणेशीलाल जी सुथार ने अपने निजी पुस्तकालय के साथ शोध प्रकोष्ठ की पुस्तकों का लाभ मुझे प्रदान किया तथा समय-समय पर अमूल्य सुझाव भी दिये। मैं हृदय से इनकी आभारी हूँ। ___सेवा मन्दिर धार्मिक शोध पुस्तकालय, जोधपुर और कैलाशसागर सूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा पुस्तकालय, अहमदाबाद से मुझे सामग्री संकलन में विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त मुझे अनेक संतवों एवं विद्वान् महानुभावों का भी उल्लेखनीय मार्गदर्शन एवं सहकार प्राप्त हुआ है, जिनमें आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी, श्रुतधर श्री प्रकाशमुनि जी, श्री प्रवीण ऋषि जी, श्री भुवनचन्द्र जी महाराज एवं श्री सुमति मुनि जी महाराज से विचार-विमर्श और परामर्श प्राप्त हुए। विद्वत् जगत् में वेदमनीषी डॉ० फतहसिंह जी, प्रो० सागरमलजी जैन, पं० अनन्त जी शर्मा, डॉ. दयानन्द जी भार्गव जैसे मूर्धन्य विद्वानों से चर्चा के माध्यम से बहुमूल्य सुझाव प्राप्त हुए। मैं इन सबकी हृदय से कृतज्ञ हूँ। परिवार के सहयोग के बिना दीर्घकालिक शोधकार्य को पूर्ण कर लेना कथमपि संभव नहीं है। मेरे परम आदरणीय पिताजी श्री सायरचन्द जी कोटड़िया, वात्सल्य विभूति माताजी श्रीमती विमला जी कोटड़िया, लघु भगिनीद्वय हेमलता एवं जयश्री, भ्राता सतीश एवं भाभी भूमिका जी के सहयोग हेतु उनका आभार व्यक्त करती हूँ। ग्रन्थ के कम्प्यूटरीकरण का कार्य जिस मनोयोग से श्री कमलेश मेहता, जोधपुर, ने सम्पन्न किया है, उससे मुझे प्रमोद है तथा मैं उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ। इस ग्रन्थ की सम्पूर्ति में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से जिन-जिन महानुभावों एवं संस्थाओं का सहयोग रहा है तथा जिनका नामोल्लेख नहीं हो सका है, उनका भी मैं अन्तर्हृदय से आभार अनुभव करती हूँ। ___इस ग्रन्थ के प्रकाशन हेतु पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मन्त्री श्रद्धेय प्रो० सागरमल जी जैन के अगाध स्नेह एवं सह निदेशक डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय की ग्रन्थ प्रकाशन में तत्परता के लिए मैं उनकी हृदय से कृतज्ञ हूँ। - श्वेता जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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