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76/ साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री
संयमात्मा के लिये अवश्य करने योग्य है ।
पवयणमायाउ इमा, निद्दिद्वा जिणवरोहिं समयम्मि | माय एयासु जओ, जिणमणियं पवयणमसेसं ।। 168 ।। प्रवचन - मातरः इमाः, निर्दिष्टाः जिनवरैः समये । मातं एतासु यतः, जिन भणितं प्रवचनमशेषम् ।। 168 ।। तीर्थकरों द्वारा शास्त्र में समिति एवं गुप्ति को प्रवचन माता कहा गया है। क्योंकि इन्हीं अष्ट- प्रवचन माताओ में जिन कथित द्वादशांगी रूप प्रवचन का सार तत्त्व समाहित है ।
सुयसागरस्स सारो, चरणं चरणस्स सारमेयाओ । समिईगुत्तीण परं न किंचि अन्नं जओ चरणं ।। 169 ।।
श्रुतसागरस्य सारः, चरणं चरणस्य सारमेता एव । समितिगुप्तिभयः परं न किन्चित् अन्यत् यतः चरणं ।। 169 ।। श्रुतसागर का सार चारित्र तथा चारित्र का सार समिति - गुप्ति रूप ये अष्ट प्रवचन माताएँ है, इनसे श्रेष्ठ अन्य कुछ भी नहीं है ।
इरियाभासा सण - आयाणे तह परिद्ववणसमिई । मणवयणकायगुत्ती, एयाओ जहक्कमं भणिमो || 170 11 ईर्या भाषा एषणा, आदाने तथा परिष्ठापन समिति । मन-वचन-काय गुप्ति एताः यथाक्रमं भणामः ।। 170 ।। इन अष्ट प्रवचन माताओं के अन्तर्गत ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, संयमोपकरण ग्रहण निक्षेपण समिति, परिष्ठापन समिति, मनो गुप्ति, वाक् गुप्ति और काय गुप्ति समाहित है, जिन्हें यथाक्रम कहता हूँ ।
आलंबणे य काले, मग्गे जयणाएँ चउहिं ठाणेहिं । परिसुद्धं रियमाणो, इरियासमिओ हवइ साहू ।। 171 ।।
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