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68 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री
कालावधि मन्द बुद्धियों के लिये है । मध्यम भूमि चार मास की है। एमेव य मज्झिमिया, अणहिज्झते असद्दहंते य । भावियमेहाविस्स वि, करणजयद्वा य मज्झिमिया । । 141 ।। एवमेव च मध्यमिका, अनधियाने अश्रद्दानवति च । भावितमेधाविनः अपि, करणजयस्था च माध्यमिका ।। 141 || दुर्मेधा के कारण, सूत्र का अध्ययन न होने के कारण अथवा मोहोदय के कारण एवं इन्द्रिय जय के लिये मध्यमा भूमि कही गयी है ।
इय विहिपडिवन्नवओ, जएज्ज छज्जीवकायजयणासु । दुग्गइनिबंधणचिच्य, तप्पडिवत्ती भवे इहरा ।। 142 ।। इति विधिप्रतिपन्नवतः यावत् षड्जीवकाययतनासु । दुर्गतिनिबधंनं एव तत्प्रतिपत्ति भवेत् इतरथा ।। 142 ।। उक्त विधि से प्रतिपन्न व्रती, षट् जीवनिकाय की यतना (रक्षा) करे अन्यथा उसकी व्रत प्रतिपत्ति (प्रतिज्ञा ) दुर्गति का कारण हो जायेगी, क्योंकि वह व्रत की प्रतिज्ञा भंग का दोषी होगा।
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एगिदिए पंचसु, तसेसु कयकारणाणुमइभेयं । संघट्टणपरितावण- ववरोवणं चयसु तिविहेणं ।। 143 ।।
एकेन्द्रियेषु पन्चषु त्रसेषु कृतकरणानुमतिभेदं । संघट्टनपरितापनअवरोपणं चतुःषु त्रिविधिना ।। 143 ।। एकेन्द्रिय में पृथ्वी काय अप्काय आदि पांच स्थावर त्रस में द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय प्राणियों का स्पर्श अथवा उन्हें परिताप पहुँचाया हो तथा उन्हें प्राणों से रहित किया हो अथवा कराया हो या ऐसा करने वालों का अनुमोदन किया हो तो उसका त्रिविध योग और त्रिकरण से त्याग करें ।
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