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64 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री
सोगंधिए य आसित्ते, दस एए नपुंसगा । संकिलट्ट त्ति साहूणं पव्वावेउं अकप्पिया ।। 128 ।। सौगान्धिकः च आसक्तः दश ऐते नपुंसकाः । संक्लिष्ट इति साधूनां प्रव्राजयितुं अकल्पिताः ।। 128 ।। दीक्षा के अयोग्य नपुंसकों के निम्न दस भेद है पण्डक, वातिक, क्लीब, कुम्भी, ईर्ष्यालु, शकुनि, तत्कर्मसेवी, पाक्षिक - अपाक्षिक, सौगंधिक, आसक्त ये दस प्रकार के नपुंसक अति संक्लिष्ट चित्त वाले होने के कारण दीक्षा के अयोग्य है ।
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वद्धिए चिप्पिए चेव, मंतओसहि उवहए । इसिसत्ते देवसत्ते य, पव्वावेज्ज नपुंसए ।। 129 ।। वर्धितः चिप्पितः चैव मन्त्रौषधिउपहतः ।
ऋषिशप्तः देवशप्तः च प्रव्राजयेत् नपुंसकान् ।। 129 1। दीक्षा के योग्य नपुंसक के निम्न छह प्रकार है। वर्द्धित, चिपित, मंत्र तथा औषधी से उपहृत, ऋषि शापित, देव- शापित इन छः प्रकार के नपुंसकों में यदि दीक्षा की योग्यता हो तो दीक्षा दे सकते हैं।
महिलासहावो सरवण्णभेओ, मिंढं महंतं मउआ य वाणी । संसद्दयं मुत्तमफेणगं च, एयाणि छप्पंडगलक्खणाणि ।। 130 ।। महिलास्वभावः स्वरवर्णभेदः मेण्ढं महान्तं मृद्वी च वाणी । सशब्दं मूत्रमफेनकं च एतानि षड्पण्डकलक्षणानि ।। 130 ।। महिला स्वभाव हो अर्थात् पुरूष होते हुये भी स्त्री की तरह चेष्टा करने वाला हो, जिसका स्वर और वर्ण एवं पुरुष के शब्दादि की अपेक्षा विलक्षण हो, जिसका पुरूष चिह्न स्थूल हो, जिसकी वाणी स्त्री की तरह मृदु हो, जिसका मूत्र शब्द युक्त हो एवं फेन ( झाग ) रहित हो - इन लक्षणों वाला नपुंसक दीक्षा लेने योग्य नहीं है ।
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