SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश पुष्पमाला/ 59 । यस्य भवेत् संवेगः निर्वेदः उपशमः च अनुकंपा। अस्तित्वं जीवादिषु, ज्ञायते तस्यास्ति सम्यक्त्वं ।। 110।। संवेग, निर्वेद, उपशम, अनुकंपा और आस्तिक्य-ये पांच सम्यक्त्व के लक्षण है। सव्वत्थ उचियकरणं, गुणाणुराओ रई य जिणवयणे। अगुणेसु अ मज्झत्थं, सम्मद्दिट्टिस्स लिगाई।। 111।। सर्वत्र उचितकरणं, गुणानुरागः रतिश्च जिनवचने। अगुणेषु च मध्यस्थं, सम्यकद्दषेः लिङ्गानि।। 111।। उचित क्रिया, गुणानुराग, जिनवचन में रूचि और अवगुणों के प्रति भी माध्यस्थ भाव ये सम्यग्दृष्टि के लक्षण है। इति पुष्पमाला विवरणे (चतुर्थे) भावनाद्वारे सम्यक् बुद्धि लक्षणं प्रतिद्वारं समर्थितम् । चरणरहियं न जाइइ, सम्मत्तं मोक्खसाहयं एक । तो जयसु चरणकरणे, जइ इच्छसि मोक्खमचिरेण ।। 112 || चरणरहितं न जायते, सम्यक्त्वं मोक्षसाधकं एक। तत्र यतस्व चरणकरणे, यत् इच्छसि मोक्षमचिरेण।। 112।। बिना चारित्र सम्यक्त्वी भी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। अतः यदि मोक्ष पाने की प्रबल इच्छा हो तो चारित्र को स्वीकार करना ही होगा। (11) चरण शुद्धि द्वारम् । किं चरणं ? कइंभेयं ?, तदरिहं पडिवत्तिविहिपरूवणया। उस्सग्गऽववाएहि य, तं कस्स फलं व किं तस्स।। 113।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy