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उपदेश पुष्पमाला/ 163
ढलने के कारण) होते है, किन्तु वे गुरूजनों के गौरव को भी नष्ट कर देती हैं। यह तुलना की गई है।
घणमालाउ व दूर-नमंतसुपओहराओ वड्दति। मोहविसं महिलाओ, दुन्निरुद्धविसं व पुरिसस्स।। 440 ||
घनमाला इव दूरं उन्नमंतपयोधरा वर्धयन्ति। मोहविषं महिलाः, दुर्निरूद्धविषमिव पुरूषस्य।। 440 || बादलों (मेघ समूह) के समान अति ऊंचाई पर स्थित और शोभन जल लिये हुए अत्यन्त उन्नत पयोघर वाली स्त्रियाँ भी पुरूषों के लिये मोहरूपी विष को बढ़ाती है, पुरूषों के लिये यह दुर्निवार होता है। महिलाओं का मोह ही विष है।
सिंगारतरंगाए, विलासवेलाए जोवणजलाए। के के जयम्मि पुरिसा, नारिनईए न वुझंति ?|| 441 ।।
श्रृङ्गारतरङ्गायाः, विलासवेलायाः यौवनजलायाः ।
के के जगति पुरूषाः, नारीनदीभिः नोह्यन्ते।। 441 || श्रृंगार रूपी तरंगवाली, विलासरूपी वेला (तट) वाली और यौवनरूपी जल वाली नारी-रूपी नदी में कौन ऐसे पुरूष है जो डूबे नहीं ? अर्थात् सभी नारीरूपी नदी में डूब रहे है या कामुक बने हुए है।
जुवईहिं सह कुणंता, संसग्गिं कुणइ सयलदुक्खेहिं। नहि मूसगाण संगो, होइ सुहो सह बिडालेहिं।। 44211 युवतिभिः सह संगं कुर्वन्, संसर्ग करोति सकलदुःखैः। न हि मूषकानां संगः, भवति शुभः सह विडालैः।। 442 ।। जो स्त्रियों का संसर्ग (सहवास) करता है वह सभी प्रकार के दुःखों को ही प्राप्त करता है। जैसे – बिल्ली के साथ मूषकों का संग (साथ में रहना) कभी भी सुखदायी नहीं होता है।
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