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162 / साध्वी श्री सम्यग्दर्शना श्री
सिद्धंतजलहिपारं, गओ वि विजिइंदिओ वि सूरो वि थिरचित्तो वि छलिज्जइ, जुवइपिसाईहिं खुद्दाहिं ।। 437 ।। सिद्धान्तजलधिपारं गतोऽपि विजितेन्द्रियः अपि शूरः अपि । स्थिर - चित्तः अपि छल्यते, युवतीपिशाचीभिः क्षुद्राभिः ।। 437 || सिद्धान्त रूपी समुद्र के पारगामी ज्ञानी जन, इन्द्रियों पर संयम रखने वाले साधक पुरूष, शूरवीर योद्धा एवं स्थिर चित्तवाले पुरूष भी नव - योवना क्षुद्र पिशाचिनियों द्वारा छले जाते हैं ।
मयणनवणीयविलओ, जह जायइ जलणसन्निहाणम्मि । तह रमणिसन्निहाणे, विद्दवइ मणो मुणिणं पि ।। 438 ।। मदननवनीतयोः विलय, यदि जायते ज्वलन सन्निधाने । तथा रमणिसन्निधाने, विद्रवति मनो मुनीनां अपि ।। 438 ।। जैसे अग्नि के सामने नवनीत (मक्खन) द्रवीभूत (पिघल) हो जाता है, उसी प्रकार रमणीय स्त्रियों के सामने मुनियों का भी मन विचलित हो जाता है अर्थात् उनका ब्रह्मचर्य भी शिथिल हो जाता है ।
नीयंगमाहिं सुपओहराहिं, अप्पिच्छमंथरगईहिं ।
महिलाहिं निन्नयाहिं व गिरिवरगुरुयावि भिज्जति ।। 439 ।। निम्नगामिभिः सुपयोधराभिः, उत्पिच्छमंथरगतिभिः । महिलाभिः निम्नगामिथिः वा गिरिवर गुरवोऽपि भिद्यन्ते ।। 439 ।। जिस प्रकार निम्नगामी नदी उन्नत पर्वतों को भी अपनी तेज धार से काट देती है, उसी प्रकार उन्नत पयोधर और मंथरगति वाली दुश्चरित्र (नीच ) स्त्रियाँ अच्छे-अच्छे व्यक्तियों के चरित्र को भी नष्ट कर देती है । यहाँ स्त्री के स्तनों की बादल (पयोधर - जल या दूध को धारण करने वाले) से तुलना की है । पुनः जिस प्रकार बादल मंथर गति से चलते हैं, वैसे ही स्त्रियां भी मंथर गति से चलती हैं। जिस प्रकार बादल के बरसने के कारण नदी निम्न गामी होती है, वैसे ही स्त्री के स्तन भी निम्नगामी ( वृद्धावस्था में
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