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उपदेश पुष्पमाला/ 13
जहाँ तक इस उपदेश पुष्पमाला का प्रश्न है इसमें मूलतः उपदेश भाग ही प्रधान है। किन्तु मूलकर्ता ने जिस-जिस स्थान पर आवश्यक समझा तत्सम्बन्धी कथाओं के नाम का निर्देश अवश्य कर दिया है। इस कथा भाग का विस्तार खरतरगच्छ के साधु सोमगणि की लघुवृत्ति में किया गया है।
उपदेश/पुष्पमाला नामक यह ग्रन्थ महाराष्ट्री प्राकृत मे निबद्ध है। किन्तु इस पर जो खरतरगच्छ के सोमगणि की टीका उपलब्ध होती है, वह संस्कृत में है।
ग्रन्थ की विषयवस्तु
जहाँ तक उपदेश-पुष्पामाला की विषय वस्तु का प्रश्न है इसमें विविध विषयों को समाविष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। इसके प्रथम द्वार में दान के स्वरूप की चर्चा है और इसी प्रसंग में अहिंसा को प्रमुखता देते हुए अभयदान के महत्त्व को स्थापित किया गया है और उसे ही सर्वश्रेष्ठ दान कहा गया है । साथ ही जीव रक्षा के सन्दर्भ में वजनाभ का कथानक भी प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय द्वार में ज्ञान के स्वरूप की चर्चा के साथ-साथ ज्ञान के भेद-प्रभेदों की चर्चा की गयी है। साथ ही सूत्रज्ञान प्राप्त करने की विधि भी उल्लिखित की गयी है और इस सम्बन्ध में विद्याधर का कथानक भी दिया गया है। लेखक ने इस ज्ञानदानद्वार में ज्ञान ग्रहण करने की योग्यता और ज्ञान ग्रहण के लाभों की भी चर्चा की है तथा इस सन्दर्भ में क्रमशः नृपपुत्र और सागरचन्द्र की कथा वर्णित है। प्रस्तुत कृति के तीसरे द्वार से सम्बन्धित विषय भी दान है। इसमें सुपात्रदान की चर्चा के सन्दर्भ में दान देने वाले और
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