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________________ उपदेश पुष्पमाला/ 125 5. गुरूकुलवासद्वारम् को य गुरु ? को सीसो ?, के य गुणा ? गुरुकुले वसंतस्स। तप्पडिवखे दोसा, भणामि लेसेण तत्थ गुरुं ।। 324 || कश्चगुरू: ? को शिष्यः ? के च गुणाः ? गुरूकुले वसतः। तत् प्रतिपक्षे दोषाः भणिष्यामि लेशेनतत्रगुरूम् ।। 324 ।। गुरु कुल में रहने वालों के क्या गुण होते हैं ? और उनके क्या दोष होते हैं? .. यहाँ मैं इन सबके विषय में संक्षेप में वर्णन करता हूँ। विहिपडिवनचरित्तो, गीयत्थो वच्छलो सुसीलो य। सेवियगुरुकुलवासो, अणुयत्तिपरो गुरु भणिओ।। 325 ।। विधिप्रतिपन्नचारित्रः, गीतार्थः वत्सलः सुशीलश्च । सेवित गुरूकुलवासः अनुवृत्तिपरः गुरूः भणितः।। 325 ।। सुविधि से प्रतिपन्न चारित्र वाला गीतार्थ, सभी जीवों का हित करने वाला सच्चरित्र गुरुकुल में वास करने वाला एवं शिष्यादि पर अनुग्रह करने वाला गुरु कहा गया है। देसकुलजाईलवी, संघयणधिईजुओ अणासंसी। अविकत्थणो अमाई, थिरपरिवाडी गहियवक्को।। 326 || जियपरिसो जियनिद्दो, मज्झत्थो देसकालभावण्णू। आसन्नकलद्धपइभो, नाणाविहदेसभासण्णू।। 327 ।। पंचविहे आयरे, जुत्तो सुत्तऽत्थतदुभयविहिण्णू। आहरणहेउउवणय-नयनिउणो गाहणाकुसलो ।। 328 ।। __स समयपरसमयविऊ, गभीरो दित्तिमं सिवो सोमो। गुणसयकलिओ एसो, पवयणउवएसओ य गुरु।। 329 ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002507
Book TitleUpdesh Pushpamala
Original Sutra AuthorHemchandracharya
Author
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, P000, & P050
File Size7 MB
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