________________
उक्तिव्यक्ति प्रकरण चल रहा है । ग्रन्थमाला द्वारा जो ग्रन्थ प्रकाशम आये हैं उनकी उपयोगिता एवं विशिष्टताकी तज्ज्ञ विद्वानोंने यथेष्ट प्रशंसा की है,और उनके द्वारा हमारे प्राचीन साहित्य, इतिहास, तत्त्वज्ञान, भाषा ज्ञान आदि अनेक सांस्कृतिक विषयों, पर, विद्वानोंको कई प्रकारकी अभिनव सामग्री ज्ञात एवं प्राप्त हुई है ।
प्रस्तुत उक्ति व्यक्ति प्रकरण का भी, इस ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशन करनेका मेरा संकल्प, शान्तिनिकेतनमें ही हो गया था। मैंने इस ग्रन्थका कुछ परिचय, शान्तिनिकेतनमें, मेरे श्रद्धेय सन्मित्र महामहोपाध्याय पं० श्री विधुशेखर शास्त्रीको दिया तो वे सुन कर बडे प्रसन्न हुए और बोले कि इस ग्रन्थको तो श्री सुनीति बाबूको दिखाना चाहिये - इत्यादि । मुझे समयका तो ठीक स्मरण नहीं है, लेकिन सन् ३२-३३ के वर्षमें, श्री सुनीति बाबूसे मेरा, सबसे पहला, परिचय हुआ, तब मैंने इनको इस ग्रन्थका परिचय दिया, जिसे सुन कर, इसे बहुत शीघ्र प्रसिद्ध कर देनेकी इनने प्रेरणा की । ग्रन्थमालाके अनेक ग्रन्थोंका संपादन और मुद्रण कार्य मैंने एका साथ शुरू कर दिया था, इससे तुरन्त तो मैं इसका मुद्रण कार्य हाथमें न ले सका; परंतु अवकाशानुसार, सन् १९३७ में मैंने इसका कुछ भाग प्रेसमें दिया । अन्यान्य ग्रन्थोंके मुद्रणके साथ इसका भी धीरे धीरे मुद्रण होता रहा । जब मूल ग्रन्थका मुद्रणकार्य पूरा हुआ, सब 'मैंने इसका व्याकरण विषयक विश्लेषण और-विवेचन लिख देनेके लिये, श्री सुनीति बाबूसे निवेदन किया और इनने बडे आनन्द और उत्साहसे उसका स्वीकार किया । इस ग्रन्थ पर, इस प्रकारके गंभीर
अध्ययन पूर्ण विवरण ( स्टडि ) लिखनेकी, इनके जैसी विशिष्ट क्षमता, भारतमें आज कोई अन्य विद्वान् रखता हो, ऐसा मुझे तो अनुभव नहीं है |
__नाना प्रकारकी साहित्यिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियोंमें सतत व्यस्त रहने पर भी, बहुत ही परिश्रमके साथ, अपना बहुमूल्य समय व्यतीत कर, श्री सुनीति बाबूने प्रस्तुत विवरणके आलेराम द्वारा, इस ग्रन्थके महत्त्व और वैशिष्ट्य पर जो प्रकाश डाला है और वैसा करके इसके संपादकके प्रति जो परम सुहृद्भाव प्रदर्शित किया है, उसके लिये मैं इनके प्रति अपना हार्दिक कृतज्ञभाव प्रकट करनेमें, अपनी परम प्रसन्नता अनुभव करता हूं।
इस उक्ति व्यक्ति प्रकरण की पुरातन ताडपत्रीय पुस्तिका पाटणके जिस प्राचीन ग्रन्थ भण्डारमें उपलब्ध हुई है-वह 'संघवी पाटक भण्डार' नामसे प्रसिद्ध है । यह ग्रन्थभण्डार एक बहुत पुरातन कालीन है। कुछ लोकोंने तो इसे स्वयं हेमचन्द्राचार्यका ही ज्ञानभण्डार कह कर उल्लिखित किया है । कम से कम ५०० से अधिक वर्षोंसे तो यह भण्डार इसी पाटक (मुहल्ला) में सुरक्षित है, जिसके निश्चित उल्लेख मिलते हैं। यों तो पाटणमें ऐसे कई प्राचीन ग्रन्थभण्डार हैं, जिनमें, इसकी अपेक्षां कई गुणी अधिक ग्रन्थसंख्या उपलब्ध होती है, पर इसकी विशेषता यह है कि एक तो इसमें केवल ताडपत्रीय ग्रन्थ ही सुरक्षित हैं और दूसरी उन ताडपत्रीय ग्रन्थोंकी संख्या, अन्य भण्डारोंकी संख्यासे कहीं अधिक है। गायकवाडस् ओरिएन्टल सिरीजसें प्रकाशित 'पाटणके ग्रन्थभण्डारोंकी सूचि' नामक बृहत्काय पुस्तकमें, इस भण्डारगत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org