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ग्रन्थसंपादकका प्रास्ताविक वक्तव्य.
भारतीय प्राच्यविद्याके विद्वानोंके करकममें, पण्डित दामोदर कृत उक्तिव्यक्ति
प्रकरण नामका यह अपूर्व ग्रन्थ, सिंघी जैन ग्रन्थमालाके ३९ वें रत्नके रूपमें, भेंट करते हुए मुझे सविशेष सन्तोष हो रहा है। ___ ..सविशेष सन्तोष इसलिये, कि इस ग्रन्थगत विषयका वास्तविक मूल्यांकन करनेका जिनका विशेष अधिकार है और जिनने मेरे स्नेहके वश हो कर, बडे परिश्रमके साथ, इस मन्थ पर बहुत ही गंभीर अध्ययनपूर्ण विस्तृत 'स्टडि' के रूपमें विवेचन लिख देनेका औदार्य दिखलाया है वे मेरे परम सुहृन्मित्र एवं परम सम्मानभाजन डॉ० श्री सुनीति कुमार चाटुा, आज जिस समय यह ग्रन्थ प्रसिद्धिमें रखा जा रहा है, अखिलभारतीय प्राच्यविद्या परिषत् के प्रध्यन अध्यक्षस्थानको अलंकृत कर रहे हैं।। डॉ० चाटुा, जैसा कि भारत के सभी प्राच्यविद्याभिज्ञ विद्वान् जानते हैं, वर्तमान भारतके एक सबसे बड़े भाषावैज्ञानिक विद्वान् हैं । इनने अपनी बहुमुखी प्रतिभाके प्रभावसे युरप-अमेरिका जैसे देशोंके विविध विद्वन्मंडलोंके सम्मुख, भारतीय संस्कृतिके गौरवका प्रकाश और प्रसार करने निमित्त, प्रौढ पाण्डित्यपूर्ण व्याख्यानादि दे कर; तथैव भाषा, साहित्य, संस्कृति इत्यादि विषयक अनेक मौलिक एवं बहुमूल्य ग्रन्थ - निबन्ध आदि .लिख कर, अभिनव भारतकी विशिष्ट विद्वत्ताका सम्मान बढाया है। इन्हींके पाण्डित्यपूर्ण परिश्रमके उत्तम फलसे अलंकृत, भारतकी नूतन - भारत-आर्यकुलीन - शाखाओंके अन्तर्गत, काशीप्रदेशीय भाषाके प्राचीन स्वरूपका, प्रामाणिक परिचय कराने वाले एवं अद्यापि अप्रसिद्ध इस अपूर्व ब्रन्थको, इस प्रकार, ऐसे सुअवसर पर, प्रकट करनेका सुयोग प्राप्त हो रहा है।
- डॉ० चाटुा महाशय लिखित 'स्टडि 'का मुद्रणकार्य कोई ६-७ वर्ष पूर्व ही संपन्न हो चुका था - लेकिन ग्रन्थमालाके कई ग्रन्थोंके एकसाथ संशोधन-संपादन-मुद्रण आदि कार्योंमें ल्यूमं रहनेके कारण, मैं इसे इतःपूर्व प्रकट करनेमें असमर्थ रहा इसलिये इसका मुझे कुछ असन्तोष भी है ।
डॉ० श्री सुनीति बाबूने इस ग्रन्थके विषयमें युरप - अमेरिकाके भास्तीयभाषाशास्त्रज्ञ विद्वानोंके सम्मुख भी, प्रसंगवश, कई वार जिक्र किया और व्याख्यानादिमें भी उल्लेख किया, जिसके कारण, देश एवं विदेशके कई जिज्ञासु विद्वान् इस ग्रन्थकी प्रसिद्धिके लिये बडे उत्सुक हो रहे हैं और उनके कई पत्रादि भी मेरे पास आते रहे हैं। आशा है कि अब इस ग्रन्थको प्राप्त कर वे अपनी जिज्ञासाको सन्तुष्ट कर सकेंगे और ऐसा हुआ तो हम अपना श्रम सफल समझेंगे ।
गुजरातके राजनगर, अहमदाबादमें, दिनांक ३०-३१, अक्टूबर, सन १९५३ में होने वाला 'अखिल भारतीय प्राच्यपरिषत् (ऑल इन्डिया ओरिएन्टल कॉन्फरन्स ) का १७ वा अधिवेशन ।
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