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जैसे कि
जिष्णुश्चेदिदशार्णमालवमहाराष्ट्रापरान्तान् कुरून् । सिन्धूनन्यतमांश्च दुर्गविषयान् दोर्वीर्यशक्त्या हरिः ।
चौलुक्यः परमार्हतः विनयवान् श्रीमूलराजान्वयी ॥ इत्यादि कुमारपाल अपने राज्य का कार्यभार सम्भाल ने में कई तरह से सफल हुआ । उसके लगभग तीस वर्ष के राज्यकाल में प्रजा ने अद्वितीय शान्ति और उन्नति प्राप्त की थी । देश समृद्धि के शिखर पर पहुँच चुका था । किसी भी प्रकार का स्वचक्र सम्बन्धी या परचक्र सम्बन्धी उपद्रव नहीं हुआ । लक्ष्मी देवी के समान ही प्रकृति देवी भी उसके राज्य पर प्रसन्न थी और उसके समय में देश में एक भी दुष्काल नहीं पड़ा । उसकी ऐसी भाग्यसफलता प्रत्यक्ष देखने वाले आचार्य सोमप्रभ इस बात पर विशेष जोर देकर लिखते हैं
स्वचक्रं परचक्रं वा नानर्थं कुरुते क्वचित् । दुर्भिक्षस्य न नामापि श्रूयते वसुधातले ॥
गुणवर्णना आचार्य हेमचन्द्र उसके सर्व गुणों के समुच्चय का परिचय बहुत ही परिमित और सर्वथा यथार्थ शब्दों में अपनी अन्तिम रचना में इस प्रकार देते हैं
कुमारपालो भूपालश्चौलुक्यकुलचन्द्रमाः । भविष्यति महाबाहुः प्रचण्डाखण्डशासनः ॥ स महात्मा धर्मदानयुद्धवीर: प्रजां निजाम् । ऋद्धि नेष्यति परमां पितेव परिपालयन् ॥ ऋजुरप्यतिचतुरः शान्तोऽप्याज्ञादिवस्पतिः । क्षमावानप्यधृष्यश्च स चिरं क्ष्मामविष्यति ॥ स आत्मसदृशं लोकं धर्मनिष्ठं करिष्यति । विद्यापूर्णमुपाध्याय इवान्तेवासिनं हितः ॥ शरण्यः शरणेच्छूनां परनारीसहोदरः । प्राणेभ्योऽपि धनेभ्योऽपि स धर्मं बहु मंस्यते ॥ पराक्रमेण धर्मेण दानेन दययाज्ञया ।
अन्यैश्च पुरुषगुणैः सोऽद्वितीयो भविष्यति ॥ यहाँ पर हेमचन्द्रसूरि भविष्य पुराण की वर्णन पद्धति के अनुसार महावीर के मुख से
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